
बिजली बिल में फिर करंट का खतरा , सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका खारिज





जयपुर। बिजली दर में बेतहाशा बढ़ोतरी के बाद राज्य सरकार और डिस्कॉम्स दोनों को करारा झटका लगा है। अडानी पावर को कोयला भुगतान के 5200 करोड़ रुपए के मामले में ऊर्जा विकास निगम की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो गई है। अब डिस्कॉम्स को अडानी पावर को बाकी 2500 से 3 हजार करोड़ रुपए के बीच राशि चुकानी होगी। हालांकि बकाया रोकड़ कितनी होगी, यह गणना के बाद ही साफ हो सकेगा। उधर, ऊर्जा विभाग से लेकर राज्य सरकार तक में हलचल मची हुई है और अफसर अन्य कानूनी विकल्प पर मंथन कर रहे हैं। विषय विशेषज्ञों के मुताबिक अब राहत मिलने के विकल्प कम हैं। गौरतलब है कि अदालती आदेश पर डिस्कॉम पहले ही 2700 करोड़ दे चुका है, जिसका भार 1.20 करोड़ उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है। उपभोक्ताओं से 36 माह तक 5 पैसे प्रति यूनिट गणना के आधार पर वसूली की जा रही है। अब बाकी चुकाने का भार भी जनता पर ही आएगा।
डिस्कॉम्स और अडानी पावर राजस्थान लि. के बीच अनुबंध हुआ। कंपनी ने राजस्थान के कवई में 1320 मेगावाट का प्लांट लगाया। कोयला भुगतान मामले में आरईआरसी ने कंपनी के पक्ष में फैसला दिया। ऊर्जा विकास निगम इसके खिलाफ एपिलिएट ट्रिब्यूनल पहुंचा। ट्रिब्यूनल ने निर्णय आने तक 70 प्रतिशत भुगतान के आदेश दिए। निगम सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने 50 प्रतिशत भुगतान के आदेश दिए। यह राशि करीब 2700 करोड़ है। इसमें मूल राशि 2288.40 करोड़ और ब्याज 420.96 करोड़ बना।सितम्बर,2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अडानी पावर के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके खिलाफ पुनर्विचार यचिका दायर की थी। ऊर्जा विभाग के अफसर एग्रीमेंट से जुड़े चेंज इन लॉ धारा पर मुख्य रूप से जोर देते रहे। दावा किया गया कि कंपनी कोयला कहीं से भी मंगवाए, उसे भुगतान अनुबंध अनुसार निर्धारित दर से ही किया जाएगा। जबकि, अडानी पावर दावा करता रहा है कि कोयला उपलब्ध ही नहीं कराया गया। उसे इंडोनेशिया व स्थानीय स्तर पर कोयला मंगवाना पड़ा, जिसके लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ा। कंपनी ने यही अंतर राशि डिस्कॉम्स से मांगी। हकीकतअडानी पावर राजस्थान लि. और डिस्कॉम्स के बीच हुए पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) में कोयला उपलब्ध कराने और खरीद दर स्पष्ट होने के बावजूद ऊर्जा विकास निगम सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखने में नाकाम रहा। इस बीच अफसरों से लेकर सरकार तक की अनुबंध की प्रावधान की मनमानी व्याख्या भारी पड़ी। पुनर्विचार याचिका किस कारण से खारिज हुई है, इसका अध्ययन किया जा रहा है। आगे के विकल्प पर कानूनविदों से राय ले रहे हैं। इसके बाद ही स्थिति साफ होगी।


