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मोबाइल बना खतरे की घंटी, बच्चे हो रहे मानसिक बीमार

खुलासा न्यूज,बीकानेर। मोबाइल अब आवश्यकता के बजाय लत बन चुका है। बच्चों से लेकर बड़े तक मोबाइल में खोए रहते हैं, जिससे सामाजिक रिश्तों के ताने-बाने में खटास आ रही है। इतना नहीं नहीं, लोग एक ही छत के नीचे होकर भी दूर-दूर रहने लगे हैं, तो संयम की क्षमता भी घट रही है। परिजनों का डांटना भी अब उन्हें नागवार गुजरने लगा है। यदि आपके बच्चे में भी मोबाइल में गेम खेलने, वीडियो बनाने का हद से ज्यादा शौक है तो सावधान हो जाइए। गेमिंग का नशा बच्चों की मेंटल हेल्थ बिगाड़ रहा है। इससे बच्चों में एग्रेशन (गुस्सा) बढ़ रहा है। यही नहीं अकेलापन और कई तरह की बीमारियां भी उन्हें घेर रहीं हैं। शहरी क्षेत्र के बच्चे तो तेजी से गेम एडिक्शन का शिकार हो रहे है।
स्मार्टफोन से बढ़ा एडिक्शन
मोबाइल गेमिंग में एडिक्शन है। स्मार्टफोन आने के बाद तो ये एडिक्शन और बढ़ गया है। तमाम तरह के गेम मोबाइल में है। इसके साथ ही इन दिनों बच्चों को अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर स्टेटस लगाने, अपने खुद के वीडियो बनाने का क्रेज भी बढ़ रहा है। कई बच्चे तो सुबह उठने से लेकर सोने तक गेम और मोबाइल में वीडियो बनाने में ही उलझे रहते है। इससे बच्चों में मेमोरी लॉस तक हो सकता है।
मोबाइल के दुष्परिणाम
– गेमिंग के हिसाब से बच्चों की साइकोलॉजी में बदलाव।
– बच्चे फैमिली, फ्रेंड्स से कटने लगे हैं।
– मेंटली और फिजिकली बच्चों की ग्रोथ पर नकारात्मक असर।
– बच्चों में तनाव, गुस्सा, चिड़चिड़ापन बढ़ा। पढ़ाई में भी मन नहीं लग रहा है।
– निर्णायक क्षमता घट रही है। बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में फैसले करने लगे है।
ऐसे दूर करें बच्चों को मोबाइल से
– इनडोर के बजाय बच्चों में आउटडोर गेम्स खेलने की प्रवृत्ति विकसित करें।
– बच्चों के सामने मोबाइल का उपयोग कम करें।
– बच्चों को एगे्रशन वाले गेम खेलने या वीडियो देखने से रोके।
– बच्चे की काउंसलिंग जरूर करवाएं तथा सोशल होना सिखाएं।

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