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एक बेटा ऐसा भी है जिसके पिता मौत के बाद भी उसके साथ रहेंगे

खुलासा न्यूज बीकानेर। पिता की मृत्यु के बाद बेटा अकेला हो जाता है लेकिन एक बेटा ऐसा भी है जिसके पिता मौत के बाद भी उसके साथ रहेंगे। अंतर सिर्फ इतना है कि पहले घर पर मिलते थे और अब कर्म स्थली पर साथ-साथ होंगे। दरअसल, शुक्रवार को बीकानेर में शिक्षक बालकिशन व्यास का शव सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज को दान किया गया। व्यास के पुत्र मोहन व्यास इसी कॉलेज के उस विभाग में काम करते हैं, जहां शवों का परीक्षण मेडिकल स्टूडेंट्स से करवाया जाता है। टेक्नीशियन के रूप में काम कर रहे मोहन का कहना है कि मुझे गर्व है कि मेरे पिता मौत के बाद भी मेरे साथ हैं और मेरे स्टूडेंट्स के लिए पथ प्रदर्शक बन गए हैं।
व्यास का निधन गुरुवार की शाम हुआ और शुक्रवार सुबह उनका शव इच्छा के मुताबिक ही मेडिकल कॉलेज के सुपुर्द कर दिया गया। मोहन बताते हैं कि पिता को मेरे काम के बारे में पूरी जानकारी थी, उन्हें यह भी पता था कि एमबीबीएस कर रहे स्टूडेंट्स को शव नहीं मिलने के कारण डमी बॉडी के साथ अध्ययन करना पड़ता है। ऐसे में जीते जी उन्होंने शव मेडिकल कॉलेज को सुपुर्द करने का निर्णय कर लिया था। कल जब उन्होंने देह त्याग दी तो परिवार ने शव कॉलेज के सुपुर्द करने का ही निर्णय किया। आज मेरे उस एनाटॉमी विभाग में पिताजी पहुंच गए हैं, जहां मैं रोज आठ घंटे रहता हूं। व्यास से जब पूछा कि उन्हें अजीब नहीं लगेगा कि कल उनके पिता के शव का चीरफाड़् उनके सामने होगा, तो उन्होंने कहा कि मेडिकल स्टूडेंट्स और स्टॉफ के लिए शव भगवान का रूप होता है। उसको प्रणाम करके ही बच्चे काम करते हैं। यह गौरव का क्षण है कि बच्चों के लिए उनके पिता ऐसा उदाहरण बन रहे हैं। उन्होंने बताया कि मां कृष्णा व्यास ने भी मृत्युपरांत देहदान का संकल्प लिया हुआ है।
एक साल में छह शव चाहिए
व्यास ने बताया कि उनके मेडिकल कॉलेज में हर साल ढाई सौ बच्चे एमबीबीएस प्रथम वर्ष में प्रवेश लेते हैं। हर तीस बच्चों पर एक शव की जरूरत होती है। इतने शव नहीं मिलते तो अब चालीस बच्चों पर एक शव परीक्षण के लिए रखा जाता है। ऐसे में दस शव कम से कम चाहिए। अब राज्य में नए मेडिकल कॉलेज भी खुल रहे हैं, जो यहां से शव की अपेक्षा करते हैं लेकिन देना संभव नहीं है।
कोविड परीक्षण हुआ, फिर दिया शव
व्यास का शव लेने से पहले उनका कोविड टेस्ट किया गया। जिसमें नेगेटिव होने के बाद ही उनका शव लिया गया। कल मृत्यु के तुरंत बाद कोरोना जांच करवाई गई थी। चूंकि ऐसे कोई लक्षण नहीं थे, इसलिए विश्वास था कि रिपोर्ट नेगेटिव होगी। वही रिपोर्ट आई और शव सुपुर्द करने का सपना सच हो गया। व्यास ने बताया कि पिछले दस महीने से मेडिकल कॉलेज को कोई शव नहीं मिला। दरअसल, कोरोना काल में अस्पताल प्रशासन भी शव नहीं लेना चाहता था।
ये भी कर चुके हैं देहदान
बीकानेर में देहदान के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में श्रीमती उषा रावत, श्रीकृष्ण सिंह, श्रीमती गंगादेवी, नरेंद्र राजपुरोहित, सहित पांच लोग पहले ही देहदान कर चुके हैं। वहीं बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी मृत्यु के बाद देहदान का शपथ पत्र भरा हुआ है। बीकानेर में सर्व कल्याण समिति इस दिशा में डॉ. राकेश रावत के नेतृत्व में काम कर रही है।
डमी बॉडी से नहीं चलता काम
मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभागाध्यक्ष मोहन सिंह ने बताया कि आजकल डमी बॉडी मिल रही है लेकिन असली शव से तुलना नहीं की जा सकती है। दोनों में दिन रात का अंतर है। असल बॉडी से ही स्टूडेंट्स कुछ सीख सकते हैं। वहीं अब बॉडी लेने के नियम भी काफी सख्त हो गए हैं। जिस शव का पोस्टमार्टम हो चुका है या जिसे कोई संक्रमित बीमारी हो चुकी है, उस शव को नहीं लिया जाता। ऐसे में शव पहले की तुलना में कम आ रहे हैं।

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