
बीकानेर- भयावह सच : कैसा टाइम आ गया…अपने भी नही आ रहे अंतिम यात्रा में





खुलासा न्यूज़, बीकानेर। भारतीय संस्कृति में अर्थी को कंधे देकर श्मशान घाट तक पहुंचाने में अपनी भागीदारी निभाने को एक पुण्य का काम समझा जाता रहा है। मोहल्ले व कॉलोनी में किसी की मौत हो जाने पर उसके दाह संस्कार में जाना हमारी पहचान थी, इसमें जान-पहचान व दुश्मनी और दोस्ती तक नहीं देखी जाती। कोरोना ने तो हमारे सुसंस्कारों से ही हमें दूर कर दिया है। कोरोना काल में परायों की बात छोडि़ए, अपनो को ही दूर कर दिया है। ऐसे में बीकानेर मे मोक्ष वाहिनी शवों को श्मशान घाट तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभा रही हैं। किसी का घर श्मशान घाट से अधिक दूर होने तथा अन्य किन्हीं परिस्थितियों में मोक्ष वाहिनी को बुलाया जाता था लेकिन कोरोना ने यह सब भ्रांतियां दूर कर दी हैं।
अब कंधे देने वाले ही नहीं मिलते
कोविड-19 से होने वाली मौतों में तो शव को सीधे ही मोक्ष वाहिनी या एम्बुलेंस से श्मशान घाट तक ले जाते हैं लेकिन इन दिनों होने वाली सामान्य मौतों में भी लोग दाह संस्कार में ही नहीं आ रहे हैं। ऐसे में मोक्ष वाहिनी ही सहारा बनी हैं। इसके लिए बस एक फोन करने की आवश्यकता है। इन गाडिय़ों में चलने वाले भजन अंतिम यात्रा को करुणामय बना देते हैं।


