अंगदान और इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलू पर क्या कहते है डॉ राकेश रावत,जाने विचार

अंगदान और इससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलू पर क्या कहते है डॉ राकेश रावत,जाने विचार

मृत्यु शाश्वत है हर कोई यही जानता है तथा प्रत्येक व्यक्ति यह भी चाहता है कि वह जाते जाते कुछ ऐसा कर जाए कि हमेशा के लिए एक मिसाल बन जाए।जिस व्यक्ति को अपने खराब अंगों के कारण जिंदगी चलाने के लिए किसी अंग की जरूरत होती है तो वह दूसरे व्यक्तियों पर ही निर्भर होता है कि कि अंग बाजार में तो मिलते नहीं। ऐसे व्यक्ति को यदि उसकी जरूरत का अंग मिल जाता है तो उसको एक नई जिंदगी मिलती है।अंगदान जीवित व्यक्ति भी दे सकता है तथा मृत्यु के उपरांत भी दे सकते हैं। ऐसे व्यक्ति जो किसी कारण से ग्रीन रेड हो जाते हैं तथा उनके बचने की कोई संभावना नहीं रहती तो उन के बहुत सारे अंग किसी दूसरे व्यक्ति को काम आ सकते हैं। कई लोगों के मन में यह मिथ्या धारणा होती है कि यदि हमने कोई अंग दान कर दिया और अंतिम संस्कार उसके बिना किया तो अगले जन्म में उस व्यक्ति को वह अंग नहीं मिलेगा, यह बहुत ही हास्यास्पद है तथा संकीर्ण सोच का परिणाम है।किसी भी धर्म में अंगदान करना या अंग प्रत्यारोपण खुद के लिए भी करवाना कहीं से भी निषेध नहीं है महर्षि दधीचि ने तो स्वयं भगवान इंद्र के धनुष के लिए अपने देह का दान किया था।क्या आप जानते हैं किस सिर्फ हमारे देश में ही अंगों की कमी के कारण लगभग 500000 व्यक्ति प्रतिवर्ष काल ग्रसित हो जाते हैं।200000 व्यक्ति लिवर की खराबी के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं।लगभग 50000 व्यक्ति दिल की बीमारियों के कारण खत्म हो जाते हैं जो यदि अंग मिल जाते तो बच सकते थे।लगभग डेढ़ लाख व्यक्ति किडनी या गुर्दे की इंतजार में अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं उनमें से मुश्किल से 5000 को ही मिल पाती है।लगभग 1000000 व्यक्ति कॉर्निया की आवश्यकता के कारण जो नहीं मिल पाती उनको ,अंधेपन का जीवन व्यतीत करते हैं।हमें सिर्फ अपनी सोच तैयार करनी है कि क्यों ना मरने के बाद भी हमारे अंग किसी के काम आ जाएं।
लेखक वरिष्ठ कान-गला विशेषज्ञ है

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