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बीकानेर को किसकी लगी नजर,मौत को लगा रहे गले लोग

-जि़न्दगी से सस्ती हुईं मौत
-आत्महत्याओं का बढ़ा ग्राफ
मनीष सिंघल
खुलासा न्यूज़,बीकानेर। सभ्यता, संस्कृति, और रीति रिजाव वाले मेरे शहर बीकानेर को जाने किस की नजर लगी है। कोरोना काल मे पिछले काफ़ी समय से आर्थिक तंगी,गृह क्लेश के मामलों मे एक के बाद एक हुई आत्महत्याओं जैसी घटनाओं ने पूरे बीकानेर को झकझोर दिया। युवाओं की अचानक आत्महत्या के बढ़ते ग्राफ से बीकानेर का हर आमजन सकते में हैं। अचानक बढ़ी आत्महत्यों की इन घटनाओं ने सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर क्या हो गया है मेरे शहर के लोंगो को क्यूं वे आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। सवाल ये उठता है की आखिर ऐसा क्यू हो रहा है ? क्यू आज का युवा इस तरह मौत को अपने गले लगा रहा है,क्यू आज के युवा को अपनी जिंदगी से सस्ती मौत लगती है ? क्या वास्तव मे जिंदगी महंगी और मौत सस्ती हो गई है? आखिर ऐसा क्या है जो शहर का युवा कुंठा हताशा, पीड़ा ,हीनभावना से ग्रसित है ? युवा वर्ग समाज मे बराबर सामंजसय बैठा पाने में सफल ना हो पाने की दिशा में लगातार परिवार के तिरस्कार से हताश हो आत्महत्या जैसा संगीन कदम उठाने को मजबूर हो रहा है । सामर्थ्य से ज्यादा अपनों को भौतिक सुख सुविधा देने की होड़ में जिंदगी की दौड़ में पिछड़ कर फिसलना समाज के लिए अपने आप में कई बड़े सवाल खड़े करता है। आखिर अपने समाज में अपनों के साथ ही अपनों की ये होड़ क्यू और किसलिए ?
क्या हम बदल रहे है या हमारा समाज
भुजिया का स्वाद और रसगुल्ले की मिठास वाली अपनी पहचान रखने वाले मेरे शहर के लोग आधुनिकता की राह पर क्या इतने आगे निकाल गए की उनसे उनके समाज के लोग ही पीछे छूट गए। क्या प्रतिस्पर्द्धा का युग हम पर इतना हावी हो गया कि हम आगे निकलने की होड़ में अपनों का साथ ही भूल बैठे। देखो जहां होड़ मची है एक दूसरे से आगे निकलने की, बस भागमभाग की होड़ आखिर ये होड़ किस लिए और क्यू ? ये होड़ ये दोड़ भी किससे अपनों की अपनों के साथ ही, कभी सोचा है की अपनों को हराकर हम आगे निकाल भी गए तो क्या हासिल होगा हार तो फिर भी हम अपने समाज में अपनों से ही जाएंगे। तो कियूं ये दौड़ और किस काम की ऐसी होड़ आखिर फायदा ही क्या है ऐसी होड़ की दौड़ का ?
मध्यम वर्ग वाले उच्च वर्ग के साथ तालमेल बैठाने के चक्कर में अपनी सीमित आय से अधिक खर्च कर समाज मे अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने का भरपूर प्रयास कर कजऱ् के चुंगल में फंस जाते है। कोरोना काल ने लोगों के रोजगार छीन लिए आमजन सकते में है कि अचानक लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। जिससे कजऱ् में डूबा मध्यम वर्ग समाज मे बराबरी के दर्जे की होड़ दौड़ता रहता है। आखिर मे कजऱ् की दोड़ उसकी होड़ से ज्यादा हावी हो जाती है। जिसका अंत बेहद दुखद और निराशाजनक ही होता है।
क्या है कारण
युवाओं का भौतिक विलासतापूर्ण जीवन शैली की और बढ़ता आकर्षण इसका एक मुख्य कारण है। हमारे परिवार के बड़े बुजुर्ग लोग भी परोक्ष-अपरोक्ष रूप मे ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। आखिर कियू बचपन से ही हम अपने बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का बोझ लाद देते है। घर के बड़े बुजुर्ग अपने बच्चो को स्कूल डालने से पहले ही तय कर लेते है की हमारा बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर ,इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी बनेगा। शुरू से ही अपने बच्चों पर इस तरह का दबाव बनाना उनके मानसिक विकास को क्षति पहुंचना है। दूसरों के बच्चों से अपने बच्चों की तुलना करना। स्कूल मे दूसरे बच्चों के परीक्षा परिणाम से अपने बच्चों के परिणाम की तुलना करना बच्चों में हीन भावना जाग्रत करता है।
घटते रोजगार बढ़ते खर्च
कोरोना काल ने लोगों के रोजगार छीन लिए आमजन सकते में है कि अचानक लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।आज युवाओं के लिए रोजगार के विकल्प बहुत सीमित हो गए है । प्राइवेट सेक्टर और सरकारी पदों पर भी भर्तियां नहीं निकलने से युवा कुंठा से ग्रसित हुआ है । फिर ऊपर से इस समय बढ़ती महंगाई ने तो मानो कमर ही तोड़ दी । महंगाई की मार से परिवार के खर्चो में इजाफा हुआ है । ऐसे में बच्चों को उच्च शिक्षा देने का सपना संजो अभिभावकों के सामने आमदनी अठ्ठनी खर्चा रुपया वाली स्थिति है ।
ऐसा हो तो आत्महत्या पर लगे अंकुश
सरकार पर पूरे प्रदेश के लोगो की सुरक्षा का जिम्मा है तो वही अपने प्रदेश के लोगों को बेहतर जि़न्दगी देने के लिए भी सरकार उत्तरदायी है। सूबे के मुखिया को चाहिए की वो युवाओं की टीस को समझे और बेहतर रोजगार के विकल्प उन्हें उपलब्ध करवाएं। शायद इतना करना तो सरकार के बस में है ही । आमजन को विश्वास दे की सरकार उनका बेहतर भविष्य संवारने में सक्षम है । परिवार के लोग भी एक दूसरे का साथ दे। थोड़े में अधिक तलाशने की कोशिश करें । होड़ की दौड़ वाली पर प्रवृति को त्यागें।

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