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यूआईटी के तत्कालीन एक्सईएन, एईएन और ठेकेदार के खिलाफ एफआर अस्वीकार, कोर्ट ने प्रसंज्ञान लिया, आरोपी किए तलब

यूआईटी के तत्कालीन एक्सईएन, एईएन और ठेकेदार के खिलाफ एफआर अस्वीकार, कोर्ट ने प्रसंज्ञान लिया, आरोपी किए तलब

यूआईटी के तत्कालीन एक्सईएन, एईएन और ठेकेदार के खिलाफ एफआर अस्वीकार, कोर्ट ने प्रसंज्ञान लिया, आरोपी िकए तलब
बीकानेर। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या दो ने यूआईटी के तत्कालीन कनिष्ठ लेखाकार का ट्रैप कराने के लिए आपसी मिलीभगत और फर्जी दस्तावेज तैयार करने के मामले में एक्सईएन, एईएन और ठेकेदार के खिलाफ पुलिस की ओर से पेश की गई एफआर अस्वीकार कर प्रसंज्ञान लिया गया है। अब आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में ट्रायल शुरू होगी।
एसीबी की स्पेशल यूनिट ने यूआईटी के तत्कालीन कनिष्ठ लेखाकार लालचंद सोनी के खिलाफ 18 सितंबर, 15 को ट्रैप की कार्यवाही की थी और 60,000 रुपए की राशि अन्य व्यक्ति आशिक से बरामद किए थे। मार्च, 23 में हाईकोर्ट ने बीकानेर एसीबी कोर्ट के चार्ज के आदेश और एसीबी की चार्जशीट को खारिज कर दिया था। इस दौरान सोनी ने वर्ष, 18 में कोर्ट में इस्तगासा पेश कर आरोप लगाया कि उसे ट्रैप कराने के लिए देव इंफ्रा के प्रोपराइटर विनोद कुमार और यूआईटी के तत्कालीन एक्सईएन प्रेम वशिष्ठ, एईएन महावीरप्रसाद टॉक ने एसीबी की कार्यवाही में आपसी मिलीभगत और धोखाधड़ी की।
कोर्ट के आदेश से सदर पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ। बार-बार जांच बदली गई। अंत में पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर सीआईडी सीबी के डीवाईएसपी पुष्पेंद्र सिंह ने जांच की और मामले में एफआर लगाकर जनवरी, 22 में कोर्ट में पेश कर दी। परिवादी लालचंद सोनी ने इसके विरूद्ध याचिका पेश की। कोर्ट ने सुनवाई की और एफआर अस्वीकार कर प्रसंज्ञान ले लिया। आरोपी एक्सईएन और एईएन रिटायर्ड हो चुके हैं, इसलिए अभियोजन स्वीकृति की जरूरत नहीं पड़ी। तीनों आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में ट्रायल चलेगी। आरोपियों को 29 जनवरी, 26 को तलब किया गया है।
बार-बार जांच बदलने का खेल चला : परिवादी लालचंद ने यूआईटी के तत्कालीन एक्सईएन, एईएन और ठेकेदार सहित एसीबी की स्पेशल यूनिट के तत्कालीन एएसपी पर्वत सिंह और इंस्पेक्टर हेमंत वर्मा को भी आरोपी बनाया था। लेकिन, कोर्ट ने माना कि एसीबी के अधिकारियों के विरूद्ध प्रसंज्ञान नहीं बनता। 4 सितंबर, 18 को सदर थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था जिसकी सर्वप्रथम जांच एसआई विकास बिश्नोई को सौंपी गई। बाद में उनसे फाइल लेकर तत्कालीन नाल पुलिस थाने के एसएचओ धरम पूनिया को जांच सौंप दी गई। उन्होंने आरोप प्रमाणित मानते हुए कोर्ट में चालान पेश कर दिया। एडीजी क्राइम के आदेश से एसपी बीकानेर ने कोर्ट से फाइल वापस मांगी और जांच आईजी ऑफिस के एएसपी विजिलेंस दीपक शर्मा को सौंप दी गई। एएसपी शर्मा ने धरम पूनिया की जांच की पुष्टि की। उसके बाद फाइल पुलिस मुख्यालय गई और वहां से जांच एएसपी ग्रामीण सुनील कुमार को दी गई।
लालचंद सोनी की ओर से सदर थाने में दर्ज हुए मुकदमे में बताया गया कि ठेकेदार विनोद की ओर से एसीबी की स्पेशल यूनिट में 14 सितंबर, 15 को शिकायत की थी कि उसने हाईमास्ट लाइट लगाने का ठेका लिया था जिसका काम पूरा होने पर 18,57,773 रुपए का बिल बनाया जिसमें टैक्स व धरोहर राशि काटकर 15.60 लाख रुपए का भुगतान होना था। कनिष्ठ लेखाकार सोनी ने इसमें 4 प्रतिशत कमिशन मांगा। ठेकेदार विनोद ने माप पुस्तिका के पृष्ठ संख्या 10 से लेकर 16 की फोटो प्रति पेश की जिसमें कार्यालय का नाम, कार्य का नाम और जारी करने वाले हस्ताक्षर नहीं थे। लालचंद ने इसकी प्रमाणित प्रति प्राप्त की तो उसकी माप पुस्तिका के पृष्ठ संख्या 16 पर प्रेम वशिष्ठ के हस्ताक्षर 26. 08 तारीख डाल किए गए। हस्ताक्षर वाली माप पुस्तिका ही एसीबी कोर्ट में पेश की गई थी। यानी ट्रैप कराने के लिए मिलीभगत कर और स्वयं को लाभ पहुंचाने के लिए गड़बड़ी की गई और माप पुस्तिका में बैक डेट में हस्ताक्षर कराए गए।फर्जी माप पुस्तिका तैयार की

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