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मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब मांगै इधकार/मत्ती करौ अळावा-छळावा-कमल रंगा

मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब मांगै इधकार/मत्ती करौ अळावा-छळावा-कमल रंगा

बीकानेर। प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा डॉ. टैस्सीटोरी को समर्पित राजस्थानी भाषा मान्यता को केन्द्र में रखकर दो दिवसीय ‘सिरजण उछब’ समारोह के तहत दूसरे दिन का कार्यक्रम लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में आयोजित हुआ। काव्य गोष्ठी के अध्यक्ष कमल रंगा ने कहा कि इस आयोजन के तहत पहली बार हिन्दी, उर्दू और राजस्थानी के कवि-शायरों द्वारा राजस्थानी भाषा मान्यता के पक्ष में अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का वाचन कर एक नव पहल की गई है। जिससे राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन को भारतीय भाषाओं का भी बल मिला है।
कवि कमल रंगा ने अपनी कविता-मायड़ भासा रौ आखौ कुटम्ब मांगै इधकार/मत्ती करौ अळावा-छळावा …….. प्रस्तुत कर करोड़ो राजस्थानियों के वाजब हक की मांग उठाई है। शायर ज़ाकिर अदीब ने अपनी ताजा ग़ज़ल के शेर- हमें हुनर नसीब है/आया है हमें बोलने का हुनर…. पेश की तो शायर क़ासिम बीकानेरी ने अपनी गजल को मान्यता के पक्ष में रखा-ज़ंजीर से गुलामी की आजाद अब करो……डॉ. नृसिंह बिन्नाणी ने राजस्थानी हाइकु पेश कर अपनी बात कही। वहीं कवि गिरिराज पारीक ने अपनी कविता-राजस्थानी को दिया सम्मान पेश की।
कवयित्री इन्द्रा व्यास ने अपने गीत मिले माण इण भासा नै/आखै जग में जाणीजै….. पेश कर मान्यता की बात रखी। कवि जुगल किशोर पुरोहित ने अपने गीत के माध्यम से-मायड़ म्हारी मात है/मिलै इण नै मान्यता…. के भाव रखे। कवि लीलाधर जोशी ने-मान दे दो रै मायड़ भासा नै…… पेश की। कवि बाबूलाल छंगाणी ने-जूना लोग जूनी भाषा रचना पेश की। वहीं युवा कवि आनन्द छंगाणी ने चोखी म्हारी मरूवाणी…. पेश की। इसी क्रम में शायर इस्हाक गौरी शफक ने अपने शेरांे के माध्यम से मान्यता के पक्ष में अपनी बात कही।
इस महत्वपूर्ण काव्य गोष्ठी में हरिकिशन व्यास, सौरभ कश्यप, बी.एल.नवीन, महेन्द्र जोशी, मदन गोपाल व्यास ‘जैरी’, गोपाल कुमार ‘कंुठित’ आदि ने भी अपनी रचनाओं के माध्यम से राजस्थानी भाषा मान्यता के समर्थन मंे विचार रखे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए कवि गोपाल कुमार ‘कंुठित’ ने ‘सिरजण उछब’ समारोह की महत्ता को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया। सभी का आभार भवानी सिंह ने ज्ञापित किया।

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