
बीकानेर में करोड़ों खर्च करने के बाद भी नाले ओवरफ्लो, पढ़ें ये खबर




बीकानेर में करोड़ों खर्च करने के बाद भी नाले ओवरफ्लो, पढ़ें ये खबर
बीकानेर शहर में नालों को पाटने की परंपरा चल गई। यही परंपरा अब सिरदर्द बन गई। नाले पाटने के बाद कुछ दूरी पर चैंबर बनाए जाते हैं। सफाई इन चैंबरों को खोलकर उसी 8 वर्गफीट इलाके की होती है जबकि सिल्ट तो पटान के नीचे जमी होती है। उसके नीचे सफाई का कोई प्लान नहीं ना कोई सिस्टम। पोकलेन मशीन है मगर वो तो ये काम करती ही नहीं। उसका काम तो सिर्फ बिल बनाने के लिए लिया जाता है। जबकि पटे हुए नालों के नीचे पोकलेन के अलावा सफाई नहीं हो सकती। नियमित पोकलेन मशीन एक ही नाले पर लगाई जाए तो वो नाला कभी जाम नहीं होगा। सीएम ने बजट में शहर की ड्रेनेज के लिए जो 59 करोड़ रुपए दिए उसमें 5 करोड़ रुपए नाला सफाई के लिए हैं।
करोड़ों रुपए नाला सफाई के नाम खर्च हो रहे मगर सिर्फ एक पाइप लाइन टूटने से 500 मीटर इलाका जलमग्न हो जाता है। आखिर ये कैसी सफाई है? ये सवाल सिस्टम पर उठ रहे हैं। हर इंस्पेक्टर के पास जेसीबी है। निगम में जेसीबी की लाइन लगी है मगर इंस्पेक्टर सिर्फ अपना सिरदर्द दूर करने के लिए जलभराव की स्थिति में निर्माण शाखा का खर्चा बढ़ाती है। क्रॉस तोड़ने के बाद उसके निर्माण का खर्चा निर्माण शाखा को भुगतना पड़ता है। सवाल ये है कि आखिर जेसीबी का इतना बड़ा जमावड़ा करता क्या है? क्यों नहीं नालों की नियमित सफाई नहीं होती? वो तो शुक्र है कि बड़े अधिकारी नियमित चेकिंग नहीं करते वरना हेल्थ शाखा के कारनामे सामने आ जाएं। निगम की दीवार से सटा नाला बीते 2 महीने से उफान मार रहा है। पॉलिथीन से अटा पड़ा है मगर सफाई के नाम कुछ नहीं। निगम आयुक्त या उपायुक्त पैदल ही इसका निरीक्षण कर लें तो हकीकत सामने आ जाएगी।




