
डॉ. टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे : कमल रंगा




डॉ. टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे : कमल रंगा
डॉ. टैस्सीटोरी की 106वीं पुण्यतिथि पर दो दिवसीय ओळू समारोह का आगाज हुआ
खुलासा न्यूज़। प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में महान इटालियन विद्वान राजस्थानी पुरोधा लुईजि पिओ टैस्सीटोरी की 106वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय ओळू समारोह के प्रथम दिन आज प्रात: डॉ. टैस्सीटोरी समाधि स्थल पर पुष्पांजलि एवं विचारांजलि का आयोजन हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने कहा कि टैस्सीटोरी सांस्कृति पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होंने राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण 1914 में ही कर दिया था एवं उन्होंने ही राजस्थानी भाषा को गुजराती से अलग एवं स्वतंत्रत भाषा बताया था। परन्तु दु:खद पहलू यह है कि आज भी इतनी समृद्ध एवं प्राचीन भाषा को संवैद्धानिक मान्यता न मिलना और ना ही विधिक प्रावधानों के होते हुए भी प्रदेश की दूसरी राज भाषा न बनना करोड़ों लोगों की जनभावना को आहत करना है। ऐसे में राजस्थानी को दोनों तरह की मान्यताएं शीघ्र मिलनी चाहिए।
रंगा ने आगे कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी ने साहित्य, शिक्षा, शोध एवं पुरातत्व क्षेत्र में अतिमहत्वपूर्ण कार्य करके राजस्थानी संस्कृति एवं विरासत को पूरे विश्व में मशहूर कर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार प्रमोद शर्मा ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति को सच्चे अर्थों में जीते थे। वे अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक प्यार राजस्थानी को देते थे। उनके द्वारा राजस्थानी मान्यता का देखा गया सपना अब सच होगा तभी उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि भाषा अधिकारी सुनील प्रसून ने अपनी विचारांजलि के माध्यम से कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महानï् साहित्यिक सैनानी थे।
युवा कवि गंगा बिशन बिश्नोई ने उनके द्वारा किए गए कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये राजस्थानी भाषा के लिए गौरव की बात है कि इटली से आकर एक विद्वान ने राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए इतने महत्वपूर्ण काम किए।
संचालन करते हुए युवा कवि गिरिराज पारीक ने डॉ. टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ कवि जुगल किशोर पुरोहित ने राजस्थानी को शीघ्र मान्यता मिले इसकी पैरोकारी की। इसी क्रम में कवि शकूर बीकाणवी ने उन्हें काव्यांजलि अर्पित की तो समाजसेवी सैय्यद साबिर अली ने उन्हें राजस्थानी का मौन साधक बताया। इस गरिमामय कार्यक्रम में पुनीत कुमार रंगा, आशिष रंगा, तोलाराम सारण, मोहित गाबा, चेतन छांबड़ा, भवानीसिंह, हरिनारायण आचार्य, अशोक शर्मा, अख्तर अली, घनश्याम ओझा, कार्तिक मोदी, शिव पंवार, कन्हैयालाल सहित अनेक राजस्थानी हेताळूओं ने लगातार उपस्थित होकर अपनी भावांजलि के साथ डॉ. टैस्सीटोरी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन कवि गिरिराज पारीक ने किया एवं सभी का आभार चेतन छाबडा ने ज्ञापित किया।
प्रारम्भ में सभी ने अपनी श्रद्धांजलि-पुष्पांजलि डॉ. टैस्सीटोरी के समाधि स्थल पर अर्पित की।




