
धनतेरस आज, खरीदारी के लिए रहेंगे 6 मुहूर्त, सोना और बर्तन खरीदने की परंपरा क्यों बनी






धनतेरस आज, खरीदारी के लिए रहेंगे 6 मुहूर्त, सोना और बर्तन खरीदने की परंपरा क्यों बनी
बीकानेर: आज धनतेरस से दीपोत्सव पर्व शुरू हो रहा है। दिनभर खरीदारी होगी। खरीदारी के लिए 6 मुहूर्त रहेंगे। शाम को आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि के साथ कुबेर और लक्ष्मी जी की पूजा होगी। इसके बाद यमराज के लिए घर के बाहर दक्षिण दिशा में दीपक लगाया जाएगा। स्कंद पुराण के मुताबिक, इस दिन यमराज के लिए दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। आमतौर पर लोग धनतेरस को पैसों से जोड़कर देखते हैं, लेकिन ये आरोग्य नाम के धन का त्योहार है। पूरे साल अच्छी सेहत के लिए इस दिन आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। विष्णु पुराण में निरोगी काया को ही सबसे बड़ा धन बताया है। सेहत ही ठीक न हो तो पैसों का सुख महसूस नहीं होता, इसलिए धन्वंतरि पूजा की परंपरा शुरू हुई। धन्वंतरि त्रयोदशी तिथि पर अमृत कलश के साथ निकले थे, यानी समुद्र मंथन का फल इसी दिन मिला। इसलिए दिवाली का उत्सव यहीं से शुरू हुआ। विष्णु पुराण के मुताबिक, समुद्र मंथन में कार्तिक महीने की बारहवीं तिथि (धनतेरस से एक दिन पहले) कामधेनु गाय निकली। अगले दिन त्रयोदशी पर धन्वंतरि सोने के कलश में अमृत लेकर प्रकट हुए। उनके हाथ में औषधियां थीं। उन्होंने संसार को अमृत और आयुर्वेद का ज्ञान दिया। यही वजह है कि इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाती है। पुराणों में इन्हें भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है।
धनतेरस और सोने का इतना धार्मिक महत्व इसलिए…
सोना भारतीय संस्कृति में अहम स्थान रखता है। ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में उल्लेख है कि सृष्टि हिरण्य गर्भ यानी स्वर्ण के गर्भ से आरंभ हुई थी। हिंदू सोने को दुनिया को चलाने वाली सबसे बड़ी शक्ति सूर्य का प्रतीक भी मानते हैं। हेम नाम के राजा के यहां पुत्र के जन्म के साथ भविष्यवाणी हुई कि शादी के चार दिन बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। राजकुमार ने जब विवाह किया तो यमराज उसे लेने आ गए। उसकी पत्नी ने गहनों का ढेर लगाकर यम का रास्ता रोक दिया और यम राजकुमार को नहीं ले जा सके। इस तरह मृत्यु टल गई। मान्यता है कि इसलिए इतना सोना खरीदा जाता है। जैन परंपरा में धनतेरस को धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन ध्यान में जाने के लिए योग करने लगे थे। इसके बाद दीपावली के दिन उन्हें निर्वाण मिला। तभी से यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

