इस्तीफे के 42 दिन बाद उपराष्ट्रपति आवास से निकले धनखड़, अब फार्महाउस में रहेंगे; विपक्ष ने हाउस अरेस्ट का आरोप लगाया था

इस्तीफे के 42 दिन बाद उपराष्ट्रपति आवास से निकले धनखड़, अब फार्महाउस में रहेंगे; विपक्ष ने हाउस अरेस्ट का आरोप लगाया था

इस्तीफे के 42 दिन बाद उपराष्ट्रपति आवास से निकले धनखड़, अब फार्महाउस में रहेंगे; विपक्ष ने हाउस अरेस्ट का आरोप लगाया था

खुलासा न्यूज़, नई दिल्ली। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ अब दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर स्थित अभय चौटाला के फार्महाउस में रहेंगे। सोमवार शाम 6 बजे उन्होंने इस्तीफे के 42 दिन बाद उपराष्ट्रपति आवास खाली कर दिया।

धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए 21 जुलाई को मानसून सत्र के पहले दिन पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से वे सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आए। विपक्ष ने इस दौरान हाउस अरेस्ट जैसे आरोप लगाए, लेकिन सरकार ने इनसे इनकार किया।

इंडियन नेशनल लोकदल प्रमुख अभय चौटाला ने बताया कि धनखड़ परिवार से उनके पुराने रिश्ते हैं। उन्होंने अपील की कि धनखड़ जी उनके घर में रहें और इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। धनखड़ अब तक संसद भवन के पास उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में रह रहे थे। उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था।

फिलहाल वे चौटाला के फार्महाउस में तब तक रहेंगे जब तक उन्हें पूर्व उपराष्ट्रपति होने के नाते मिलने वाला टाइप-8 सरकारी बंगला आवंटित नहीं हो जाता। करीबी सूत्रों ने बताया कि वे परिवार के साथ समय बिता रहे हैं, टेबल टेनिस खेल रहे हैं और योग कर रहे हैं।

नए उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होगा
इस चुनाव में एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन (महाराष्ट्र के राज्यपाल) का मुकाबला विपक्ष के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी से होगा।

धनखड़ और चौटाला परिवार के रिश्ते
धनखड़ और चौटाला परिवार के बीच 40 साल पुराना रिश्ता है। 1989 में हरियाणा के बड़े जाट नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने धनखड़ को ‘फ्यूचर का लीडर’ कहा था। धनखड़ उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं।
उसी साल देवीलाल ने धनखड़ को झुंझुनूं से लोकसभा टिकट दिलाया और जीत के बाद मंत्री भी बनवाया। बाद में जब वी.पी. सिंह ने देवीलाल को मंत्रिमंडल से हटाया तो विरोध में इस्तीफा देने वाले धनखड़ अकेले मंत्री थे।

पेंशन के लिए आवेदन
30 अगस्त को धनखड़ ने पूर्व विधायक पेंशन के लिए राजस्थान विधानसभा सचिवालय में फिर से आवेदन किया। वे 1993 से 1998 तक किशनगढ़ से कांग्रेस विधायक रहे थे। जुलाई 2019 तक उन्हें पेंशन मिल रही थी, लेकिन पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने पर यह बंद हो गई थी।

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