
राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता की हकदार: प्रोफेसर कर्नाटक






राजस्थानी विभाग एवं महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राजस्थानी विभाग-स्वर्ण जयंती समारोह
आजादी के पश्चात् प्रादेशिक भाषाओं के साथ अन्याय हुआ- प्रोफेसर चारण
खुलासा न्यूज, जोधपुर। भाषा संचार का माध्यम ही नहीं बल्कि संस्कृति का पर्याय भी है। प्रादेशिक भाषाओं के बिना देश की संस्कृति खत्म हो जायेगी क्योंकि संस्कृति का अस्तित्व भाषा पर निर्भर है। राजस्थानी एक प्राचीन एवं समृद्ध भाषा है। राजस्थानी शक्ति, भक्ति एवं साहित्य की त्रिवेणी है। राजस्थानी भाषा की कालगत विवेचना करते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता की हकदार है। महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश एवं राजस्थानी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राजस्थानी विभाग की स्थापना के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन समारोह में यह विचार जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफसर (डॉ.) अजीत कुमार कर्नाटक ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के 77 वर्ष बाद भी हम मानसिक रूप से अपनी मातृ भाषा को छोड़कर विदेशी भाशाओं के गुलाम बने हुए हैं जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित एवं डॉ.महेन्द्रसिंह तंवर ने बताया कि स्वर्ण जयन्ती समारोह के उद्घाटन सत्र में ख्यातनाम कवि-आलोचक डॉ. अर्जुन देव चारण ने कहा कि देश की आजादी के बाद राजस्थानी भाषा के साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ यह प्रदेश के 10 करोड़ लोगों का दुर्भाय है कि उनकी मातृभाषा को आज तक संवैधानिक मान्यता नही मिली। उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा में बोलियों के नाम पर भ्रम फैलाकर दुष्प्रचार करना ठीक नहीं है। क्योंकि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने से किसी भी भाषा को कोई नुकसान नहीं होने वाला। राजस्थानी भाषा इस प्रदेश की संस्कृति की परिचायक है।
समारोह के प्रारम्भ में डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने राजस्थानी विभाग की स्थापना से लेकर आज तक की विकास यात्रा की जानकारी दी। तत्पश्चात राजस्थानी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर कल्याणसिंह शेखावत एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती आनन्द कंवर राठौड़ का भव्य अभिनन्दन किया गया। प्रोफेसर सोहनदान चारण को साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार मिलने पर राजस्थानी विभाग द्वारा साफा पहनाकर स्वागत किया गया। ख्यातनाम कवि डॉ.अर्जुन देव चारण पर केन्द्रित लेखक की संगत विडियो साक्षात्कार का लोकार्पण किया गया।
छ: पुस्तकों का हुआ लोकार्पण: स्वर्ण जयन्ती समारोह के उद्घाटन समारोह में भींवसिंह राठौड़ रचित ‘चिबटी भर चांनणौ’, मीनाक्षी बोराणा संपादित ‘गुमेज’, धनंजया अमरावत लिखित ‘सायाजी झूला’, ओम नागर रचित ‘मड़ाई’, महेन्द्र सिंह तंवर लिखित ‘ओरण आफ वेस्टर्न राजस्थान’ एवं गजेसिंह राजपुरोहित लिखित ‘राजस्थानी सिरजण री साख’ का अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया।
मायड़ भाषा सेवा सम्मान : इस अवसर पर राजस्थानी भाषा-साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए प्रदेश रा प्रतिष्ठित रचनाकार डॉ. मंगत बादल रामसिंहनगर, मधु आचार्य बीकानेर, डॉ.मदन सैनी श्रीडूंगरगढ, डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास अजमेर, डॉ.राजेश कुमार व्यास जयपुर, डॉ.सत्यनारायण सोनी हनुमानगढ, डॉ. ओम नागर कोटा, डॉ.सुरेश कुमार सालवी उदयपुर, डॉ. मदनगोपाल लढा महाजन, डॉ.रीना मेनारिया को महाराजा गजसिंहजी द्वारा हस्ताक्षरित अभिनन्दन पत्र, स्मृति चिह्न प्रदान कर, साफा एवं माला पहनाकर मायड़ भाषा सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया।
शोधार्थियों का सम्मान: उद्घाटन सत्र में राजस्थानी विभाग से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करने वाले पचास से अधिक शोधार्थियों को माल्यार्पण कर स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मायड़ भाशा फाउण्डेशन के सचिव तरनिजा मोहन राठौड़, डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास, वॉकेन्द्र सिंह नगर एवं चनणसिंह ईन्दा का सम्मान किया गया।
पाग-पगड़ी एवं पुस्तक प्रदर्शनी: राजस्थानी ग्रंथागार एवं सूर्य प्रकाशन मंदिर की ओर से राजस्थानी बुक एवं दी हैरिटेज साफा द्वारा पाग-पगड़ी की भव्य प्रदर्शनी लगाई गई जिसकी दर्शकों ने खूब सराहना की।
तकनीकी सत्र: दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन आयोजित तीन साहित्यिक सत्रों में डॉ. मंगत बादल, प्रोफेसर जहूर खाँ मेहर एवं डॉ. चांदकौर जोशी की अध्यक्षता में डॉ. इन्द्रदान चारण, डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास, डॉ. दिनेश चारण, डॉ. मदनसिंह राठौड़, डॉ. सत्यनारायण सोनी, डॉ. सुरेश सालवी, डॉ. मदनगोपाल लढ्ढा, डॉ. गौतम अरोड़ा, श्रीमती किरण बादल, डॉ. रीना मेनारिया, श्रीमती संतोष चौधरी, श्रीमती शकुंतला पालीवाल ने राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति विषयक विविध विषयों पर आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर प्रो. जहूर खाँ मेहर, डॉ. सोहनदान चारण, डॉ. महेन्द्र सिंह तँवर, डॉ. शक्तिसिंह खाखड़की, चाँदकौर जोशी, डॉ. धनंजया अमरावत, डॉ. मीनाक्षी बोराणा, माधव राठौड़, डॉ. जेबा रसीद, नमामी शंकर आचार्य, राजराम चौधरी, डॉ. कमल किशोर सांखला, डॉ. विमलेश राठौड़, मनमोहन स्वरूप माथुर, संतोष चौधरी, रेणु वर्मा, पूजा राजपुरोहित, डॉ. सुखदेव राव, कालूराम प्रजापति, डॉ. कप्तान बोरावड़, डॉ. रामरतन लटियाल, पदम मेहता, डॉ. भंवरलाल सुथार, डॉ. भवानीसिंह पातावत, मोहनसिंह रतनू, इन्द्रदान चनणसिंह ईन्दा, महेन्द्र सिंह छायण, राजूराम बिजारणिया, प्रकाशदान चारण, हेमकरण लालस, कीर्ति परिहार, डॉ. ललित पंवार, डॉ. भरत देवड़ा, इन्द्रजीत शर्मा, विरेन्द्रसिंह चौहान, अभि पंडित, शान्तिलाल के साथ ही सहित राजस्थानी विभाग के विद्यार्थी, शोधार्थीगण कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।


