
सरपंच पति की अब नहीं चलेगी ‘पंचायती’, जुर्माना और गंभीर दंड लगाने की हो रही तैयारी






सरपंच पति की अब नहीं चलेगी ‘पंचायती’, जुर्माना और गंभीर दंड लगाने की हो रही तैयारी
खुलासा न्यूज़। पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण तो दे दिया गया पर निर्वाचन के बावजूद ज्यादातर मामलों में उनके पति या अन्य परिजनों ने उन्हें वह जगह और जिम्मेदारी लेने नहीं देते हैं जिसकी वे हकदार थीं। ऐसा करना अब जनप्रतिनिधि महिलाओं के पति या परिजनों को भारी पड़ सकता है। पंचायत मंत्रालय पंचायती राज की तीनों संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि के कामकाज में उनके पति के दखल को अपराध की श्रेणी में लाकर गंभीर दंड और जुर्माने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसी तरह पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए सभी श्रेणियों में न्यूनतम स्कूल स्तर की शिक्षा अनिवार्य करने पर भी विचार किया जा रहा है।
दरअसल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि या मुखिया के कामकाज को उनके परिवार के पुरुष संभालते हैं। ऐसे हालात को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के 6 जुलाई 2023 के आदेश पर पंचायती राज मंत्रालय ने पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति का गठन किया था। हाल ही समिति ने पंचायती राज मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी है।
इन वजहों के चलते महिलाओं को नहीं मिल रही कमान
सलाहकार समिति ने माना है कि पंचायती राज की तीन स्तरों की संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण तो दिया गया, पर अभी भी पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रचलन, कानूनी सुरक्षा उपाय सीमित होने और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के चलते महिलाओं को पूर्ण अधिकार नहीं मिला है। समिति ने गहन जांच कर ‘पंचायती राज प्रणालियों और संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और उनकी भूमिकाओं में परिवर्तन: प्रॉक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करना’ नामक रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कई सिफारिशें की गई हैं। मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को मंजूर कर लिया है। अब सरकार के स्तर पर इस पर निर्णय किया जाएगा।
इन 14 राज्यों की भागीदारी
समिति की चार कार्यशालाएं हुई हैं। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम की भागीदारी रही है।

