
रेल फाटक की समस्या पर एक बार फिर चुप्पी साधी नेताओं ने, आखिर कब तक चलेगा ऐसा?





खुलासा न्यूज, बीकानेर। बीकानेर रेल फाटक की समस्या के समाधान को लेकर अनेक दावे-वायदे हो चुके हैं, परंतु एक भी दावा-वायदा अभी तक धरातल पर नहीं उतरा। चुनाव के वक्त राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को अपना चुनावी एजेंडा बनाती है, जिस पर दावा किया जाता है कि हमारी सरकार आएगी तो बीकानेर रेल फाटकों की समस्या का हल किया जाएगा। लेकिन चुनाव के बाद राजनेता इस भूलते नहीं है, बल्कि इसे नजरअंदाज करते रहते हैं, कहीं किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों द्वारा इस मुद्दे पर सवाल कर लिया जाता है तो राजनेता अपनी बात को घुमाते हुए मुद्दे से दूरी बना लेते है। कभी बहाना मार लिया जाता है कि राज्य सरकार तैयार है, लेकिन रेलवे ने मामला अटका रखा है। जबकि रेलवे इस समस्या के निस्तारण करने के लिए समझौता कर चुका है और अपनी तरफ से वर्ष 2022 में ही काम पूरा कर चुका है, अब सारा काम सरकार के हाथ में है। यानि सरकार चाहेगी तो ही बीकानेर शहर की रेल फाटकों की समस्या का हल हो सकता हो सकता है। पिछली कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष कहा कि रेल फाटक की समस्या को लेकर सरकार ने बजट जारी कर दिया, लेकिन रेलवे उस बजट का उपयोग नहीं कर रही है। इस बहाने के साथ सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया और अब बीजेपी की सरकार है, जिनके यहां के स्थानीय विधायकों ने चुनाव के वक्त शहर की जनता के सामने बड़े-बड़े दावे किये थे कि अगर सरकार में आए तो एक साल के अंदर-अंदर रेल फाटकों की समस्या पर काम शुरू हो जाएगा, अब सरकार को एक साल से अधिक समय हो गया, लेकिन काम शुरू होना तो दूर की बात, कोई इस मुद्दे पर बोल भी नहीं रहा कि काम होगा या नहीं। होगा तो कब तक शुरू हो जाएगा। राजनेताओं की चुप्पी से यह साफ जाहिर हो रहा है कि इस सरकार में शहर की जनता की भलाई के लिए यह काम नहीं होने वाला। यानि अगले चुनाव में एक बार फिर रेल फाटक की समस्या चुनाव एजेंडा बनेगी। जनता को मूर्ख बनाया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसे कब तक चलेगा? कब तक शहर की जनता हर आधे घंटे बाद लगने वाले सिग्नल की वजह से जाम में फंसती रहेगी? कब तक कुछ मात्र लोगों के स्वार्थ के चलते शहर की 15 लाख की आबादी परेशानी होती रहेगी? ये सभी सवाल उन नेताओं की उस जुबां पर चोट करते है जो चुनाव के वक्त ये कहते हुए नजर आते है कि हमारी सरकार बनी तो समाधान करवाएंगे। समाधान तो दूर, मुद्दे पर बात तक नहीं करते। मुद्दे से दूर-दूर तक भागते नजर आते है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।




