
बीकानेर का एक ऐसा मंदिर जिसकी देशी घी से भरी गई जिसकी नीव गर्मियों में आज भी होता है घी का रिसाव






बीकानेर का एक ऐसा मंदिर जिसकी देशी घी से भरी गई जिसकी नीव गर्मियों में आज भी होता है घी का रिसाव
खुलासा न्यूज़। भांडा शाह के नाम से प्रसिद्ध भगवान सुमतिनाथ का मंदिर बीकानेर की स्थापना से पहले का है. सेठ लूणकरण जैन के पास एक बार एक जैन धर्म गुरु आये. उन्होंने लूणकरण की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें एक पारस पत्थर और एक गाय आशीर्वाद स्वरूप दी. इसके बाद वे तीर्थ यात्रा पर चले गए. जब वे वापस आये तो उन्होंने देखा कि जाते समय वे सेठ लूणकरण के पास एक कमरा देख कर गए थे और अब वहां महल बन गया है. तो उन्होंने उस पारस पत्थर को वापस मंगवाया. जब उसे इधर-उधर लगा कर देखा तो हर चीज़ सोने में बदल गई. ये देख उन्होंने पारस पत्थर वापस मांगा तो लूणकरण ने देने से इनकार कर दिया.
जैन मुनि के कहने पर बनवाई मंदिर
इससे क्रोधित होकर जैन धर्म गुरु ने उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारा वंश आगे नहीं बढ़ेगा. ये सुनकर सेठ लूणकरण व्यथित हो गए और माफ़ी मांगने लगे. तब जैन मुनि ने कहा कि जो गाय मैंने तुम्हें दी है, उसके मुंह का झाग जहां गिरे तो वहीं मंदिर बनवा देना. सेठ लूणकरण ने ऐसा ही किया. आज जहां, ये मंदिर है, वहीं गाय ने अपने मुंह से झाग गिराया. वहीं पर मंदिर बनवाने का फैसला किया.
40 हजार किलो घी से नीव भरवाया
जब सेठ लूणकरण जैन ये मंदिर बनवा रहे थे, उसी दौरान शाम को जल रहे घी के दीपक में एक मक्खी गिर गई. तो सेठ लूणकरण ने उसे निकाल कर अपनी जूती पर रगड़ दिया. ये देखकर मंदिर बनाने वाले चलवे (राजमिस्त्री) को बहुत आश्चर्य हुआ. उन्होंने सोचा कि सेठ बहुत कंजूस है. जब नींव भरने का समय आया तो उन्होंने सेठ से कहा कि यहां की ज़मीन में बजरी है, इसलिए मंदिर की नींव शुद्ध देशी घी से भरनी पड़ेगी. ये सुन कर उन्होंने तुरंत 40 हज़ार किलो घी मंगवाया और नींव भरवाई. ये देखकर राजमिस्त्री शर्मिन्दा हुए और उन्होंने माफी मांगी. ऐसी मान्यता है कि आज भी 50 डिग्री के आसपास तापमान होने पर यहां से घी का रिसाव होता है.
जैसलमेर के पीले पत्थर से बना है मंदिर
ये मंदिर तीन मंज़िला इमारत है और जैसलमेर के पीले पत्थर से बनी है. यहां पूरे फ़र्श पर इटली की टाइल्स लगी हुई है. खास बात ये है कि टाइल्स के हर ब्लॉक का डिज़ाइन अलग है. पूरा मंदिर उस्ता कला की बेहतरीन कलाकारी से सुसज्जित है. 600 साल पुराना ये मंदिर आज देव स्थान विभाग के अंडर में है. पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है. चिन्तामणि जैनमंदिर प्रन्यास इसकी देखरेख करता है.


