
ऊंट उत्सव: न भीड़ जुटी न ऊंट दिखे, अव्यवस्थाओं का रहा आलम







पत्रकार कुशालसिंह मेड़तिया की खास रिपोर्ट
बीकानेर। तीन दिवसीय जिला स्तरीय ऊंट उत्सव का समापन रविवार को हो गया। जिला स्तरीय इसलिए क्योंकि इस बार का उत्सव कहीं से भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर का नजर ही नहीं आया। उत्सव का नाम जरूर कैमल फेस्टिवल था, लेकिन तीन दिन में से एक दिन शनिवार को एनआरसीसी में ऊंटों की हुई तीन घंटे की प्रतियोगिता को छोड़ दिया जाए तो पूरे उत्सव में ऊंट कम ही नजर आए। सबसे बड़ी बात तो इस बार पर्यटन विभाग भीड़ जुटाने में भी पूरी तरह से फैल नजर आया। किसी भी जगह पर उस स्तर की भीड़ ही नहीं जुट पाई, जो हर साल नजर आती है। जिन कार्यक्रमों की वजह से हर साल उस्तव को नई पहचान मिलती थी, लेकिन पर्यटन विभाग उसी को अगले साल बंद कर देता है। यह कोई एक या दो साल से नहीं हो रही, बल्कि पिछले कई सालों से पर्यटन विभाग यही करता हुआ नजर आ रहा है। इस बार के नवाचार तो लोगों को मानों पसंद ही नहीं आए क्योंकि इनमे न तो विदेशी बड़ी संख्या में पहुंचे और न ही स्थानीय लोग वहां पहुंचे। लाखों का बजट मिलने के बाद भी पर्यटन विभाग उस स्तर पर प्रचार-प्रसार नहीं कर पाया, जो होना चाहिए था। उत्सव के दौरान ही अव्यवस्थाओं का आलम पहले दिन से ही नजर आया। जब हेरिटेज वॉक के दौरान सड़कों पर पशु नजर आए। इसके बाद आयोजित हुए कार्निवल के दौरान भी भीड़ नहीं जुट पाई। जबकि इसका भी आयोजन पहली बार पब्लिक पार्क में हुआ था, जहां बड़ी संख्या में लोगों ने उत्सव का लुत्फ़ उठाया था। इसके बाद रात को धरणीधर मैदान में पहली बार उत्सव को ले जाया गया। यहाँ के लिए भी बड़े-बड़े दावें हुए, लेकिन नतीजा यह निकला की यहां पर कार्यक्रम शुरू होने के आधे घंटे बाद ही विदेशी सैलानी निकलने शुरू हो गए। रात 9 बजे के बाद जरूर लोगों का रुझान यहां दिखा। लेकिन यहां भी प्रतियोगिता को लेकर प्रतिभागी अपना विरोध दर्ज करवाते भी दिखे। दूसरे दिन की शुरुआत जहां एनआरसीसी में हुई। 11 बजे शुरू हुआ कार्यक्रम भी महज तीन घंटों में ख़त्म कर दिया गया। जिस प्रतियोगिता को देखने के लिए सैलानी यहां आते है, लेकिन उसी प्रतियोगिता में ऊंटों की संख्या ही कम नजर आई। हर साल जहां हैरतंगेज करतब के साथ ऊंटों का नृत्य होता है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं था। हर बार बड़ी संख्या में ऊंट नृत्य में ऊंटपालक हिस्सा लेते है। लेकिन इस बार यह संख्या एक डिजिट में ही नजर आई। ऊंटों के इस उत्सव में घोड़ों की दौड़ करवाई गई। रात को करणीसिंह स्टेडियम में भी नजर कुछ ऐसा ही नजर आया। जहां मिस मरवण प्रतियोगिता के रिजल्ट के विरोध में प्रतिभागी धरने पर बैठ गए। इस तरह की चीज पहले कभी नहीं देखने को मिली। रायसर में भी इस बार पिछले साल जैसी बात नजर नहीं आई। यहां भी दावें तो खूब हुए लेकिन हकीकत कुछ ओर ही नजर आई। दावे भले ही कुछ भी किए जा रहे हो, लेकिन हकीकत तो यहीं है की इस बार के ऊंट उत्सव ने जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग की पोल खोलकर रख दी। इस तरह से तो कहीं अगले साल उत्सव को बड़े स्तर पर करना ही मुश्किल हो जाएगा। जबकि आज से कुछ साल पहले तक ऊंट उत्सव का आगाज जूनागढ़ से डॉ. करणी सिंह स्टेडियम तक शोभायात्रा के रूप में होता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इस शोभायात्रा को ही बंद कर कार्निवल शुरू किया गया। उत्सव को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए प्रयास किए जाते थे, लेकिन इस बार तो ऐसा लगा की महज उत्सव करवाने का कोरम ही पूरा किया गया है और कुछ नहीं।


