
राजस्थान में अब भी कांग्रेस में गहलोत व भाजपा में वसुंधरा का दोनों का अपना अपना वर्चस्व कायम है





जयपुर। आज राजस्थान मॉडल ऑफ पॉलिटिक्स की बात करते हैं। क्योंकि राजस्थान ही देश में इकलौता और सबसे बड़ा राज्य है। जहां कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति काफी अलग ढंग से चल रही है। सबसे पहले कांग्रेस पार्टी से शुरुआत करते हैं। जहां आलाकमान को ही अब तक सर्वेसर्वा माना जाता था। कहा जाता था कि जो आलाकमान ने कह दिया। वही पत्थर की लकीर है।
लेकिन राजस्थान में ऐसा नहीं है। दिसंबर 2018 में राहुल गांधी ने यूनाइटेड कलर आफ राजस्थान कैप्शन के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट की फोटो ट्वीट की। जिससे आलाकमान कहना चाहता था कि दोनों एक दूसरे के पूरक बनकर साथ काम करें और पार्टी को आगे बढ़ाएं।
बावजूद इसके राजस्थान में साथ काम करने का सामंजस्य नहीं बैठ पाया। सत्ता में अशोक गहलोत ने अपना एकाधिकार रखा। जिससे सचिन पायलट नाराज हो गए और कुछ विधायकों के साथ मानेसर जाकर बैठ गए। हालांकि, आलाकमान के दखल के बाद वह पूरा मामला शांत हुआ। लेकिन राजस्थान कांग्रेस में पिछले 4 साल और 10 महीने से जो हो रहा है।
वह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ आम जनता भी देख रही है। लेकिन चुनाव से ठीक पहले अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट पुराने सारे गिले शिकवे को भूलकर आगे बढऩे की बात कह रहे हैं। लेकिन जो लोग राजनीति में रुचि रखते हैं। वह इतना आसानी से माफ नहीं करते हैं।
जब राजस्थान में आलाकमान का एक लाइन का प्रस्ताव लेकर कांग्रेस नेता पहुंचे थे। लेकिन तब मीटिंग तक नहीं हो पाई थी। विधायकों के इतने बड़े विद्रोह के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी कुर्सी पर काबिज रहे। इसके बाद चुनाव में भी उम्मीदवारों की लिस्ट में अशोक गहलोत की छाप साफ नजर आती है। इसके साथ ही चुनावी प्रचार – प्रसार का जो तंत्र है। वह भी अशोक गहलोत के ही इर्द – गिर्द घूम रहा है।
अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी में कितने ताकतवर और हावी हो गए हैं। इस बात का अंदाजा आप इस से भी लगा सकते हैं कि पिछले दिनों जब प्रियंका गांधी राजस्थान के सिकराय में सभा करने आई थी। उस वक्त बिना उम्मीदवारों की घोषणा हुई ही। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंच से पांच उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, दिल्ली में जब उम्मीदवारों को लेकर अशोक गहलोत नाराज हुए।
उन्होंने आलाकमान के सामने ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी। हालांकि अगले ही दिन उन्होंने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आलाकमान यानी (गांधी परिवार) का आशीर्वाद खुद के पास होने का दावा किया। उन्होंने कहा कि मैं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडऩा चाहता हूं। लेकिन यही वह कुर्सी है, जो मुझे नहीं छोड़ रही है। इसपर तीन बार से मैं काबिज हूं और चौथी बार भी मैं ही रहूंगा।
राजस्थान में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि, भारतीय जनता पार्टी में भी हालत ठीक नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाना चाहता है। लेकिन वसुंधरा राजे ऐसा नहीं होने देना चाहती थी। उसके बाद 72 दिन तक बीजेपी शीर्ष नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच शीत युद्ध चलता है। इतिहास में पहली बार 72 दिन तक भारतीय जनता पार्टी बिना अध्यक्ष के रहती है। इसके बाद में वसुंधरा की राय के आधार पर मदनलाल सैनी को राजस्थान की कमान सौंप दी जाती है।
उसके बाद भारतीय जनता पार्टी सतीश पूनिया का एक नया चेहरा सामने लाती है। जो राजस्थान में 3 साल तक ग्राउंड पर पार्टी को मजबूत करने की मेहनत करते हैं। चुनावी साल में राजस्थान बीजेपी के प्रभारी अरुण सिंह मीडिया में बयान देते हैं कि सतीश पूनिया के नेतृत्व में ही राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन मार्च में सतीश पूनिया को हटाकर बीजेपी सांसद सीपी जोशी को राजस्थान की कमान सौंप देती है।
इस पूरे कालखंड के बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा राजे से दूरी बनाए रखता है। लेकिन जैसे ही विधानसभा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जाती है। तो राजस्थान में बीजेपी के खिलाफ विरोध शुरू हो जाता है। इसके बाद वह पार्टी जो मुख्यमंत्री और कैबिनेट बदलने में वक्त तक नहीं लगाती। वह पार्टी फिर से वसुंधरा राजे को तवज्जो देने लगती है। दूसरी लिस्ट में वसुंधरा की राय के आधार पर काफी उम्मीदवारों को टिकट दिया जाता है। ऐसे में एक बार फिर शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा के आगे कमजोर नजर आ रहा है।
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के हालात इतने अच्छे नहीं की वह सिर्फ नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव जीत सके। देशभर में जहां बीजेपी के प्रचार कैंपेन में नरेंद्र मोदी की तस्वीर सबसे बड़ी और इकलौती होती है। इसके उलट राजस्थान में नरेंद्र मोदी के साथ वसुंधरा राजे और जेपी नड्डा को सेकंड लाइन में जगह दी गई है। जबकि राजेंद्र राठौड़ और सीपी जोशी को थर्ड लाइन में रखा गया है। इसके साथ ही राजस्थान में आम जनता को भी बीजेपी के आला नेताओं के साथ पोस्टर में जगह दी गई है। जिससे शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी साफ जाहिर होती है।

