
ऐसे थे 1952 के चुनाव: देखो मैं झूठ नहीं बोल रहा मैं अपना वोट आपको ही दिया है






बीकानेर (अभिमन्यू)। राजस्थान में चुनाव का दौर शुरू हो चुका है और चुनावों की चर्चा भी गली-गली नुक्कड़ नुक्कड़ होने लगी है. ऐसे में कहीं पुराने किस्से लोग याद करते हैं और एक दूसरे को सुनाते हैं. तो हम आज बात करेंगे उसे समय की जब देश में 1952 में नए-नए लोकतंत्र को लागू ही किया गया था. ऐसे में भारत देश की आम जनता को लोकतंत्र के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी उन्होंने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं से सुनना जरूर था. जब देश में पहला चुनाव हुआ तो वह चुनाव लोकसभा और विधानसभाओं का एक साथ हुआ . उसे समय वोट लोग बैलट पेपर से देते थे. बैलट पेपर में एक मोहर होती थी उसका ठप्पा संबंधित प्रत्याशी के निशान के आगे लगाकर अपना मत दिया जाता था. चूंकि हिंदुस्तान के लोगों ने पहली बार वोट देना सीखा था और पहली बार लोकतंत्र से रूबरू हो रहे थे. ऐसे में कई लोग ऐसे भी थे जिन्हें वोट देना आता नहीं था या यूं कहे कि वोट देने की प्रक्रिया की पूर्ण जानकारी उनको नहीं थी. ऐसे में हुआ यूं कि कुछ लोग बैलेट पेपर पर मोहर लगाकर और बैलेट पेपर को अपने जेब में डालकर मतदान केंद्र से बाहर लेकर आ गए. जब संबंधित प्रत्याशी ने पूछा कि आपने किसको वोट दिया है तो उस व्यक्ति ने वैलेट पेपर बाहर निकाल कर दिखाया कि देखो मैं झूठ नहीं बोल रहा मैं अपना वोट आपको ही दिया है. बैलेट पेपर मतदान केंद्र से बाहर देखकर लोग चौंक जाते और सन्न रह जाते. संबंधित मतदाता को फिर यह जानकारी दी जाती कि यह वैलेट पेपर बाहर नहीं लाना था इसे मतदान केंद्र के अंदर बैलेट पेपर के लिए प्रयुक्त की जा रही मतपेटी में ही डालना था. तब वह व्यक्ति पुन: मतदान केंद्र के अंदर जाकर अपना मत पेटी में डालकर आता. ऐसे में कुछ लोग जो वैलेट पेपर लेकर घर चले जाते वह अपना मतपत्र मतदान पेटी डाल ही नहीं पाते. धीरे धीरे लोगों ने मतदान प्रक्रिया सीखी और आज भारत का मतदाता बटन दबाकर मतदान करता है.


