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शहर को साफ-सुथरा रखने में फेल साबित हो रहा निगम, जगह-जगह लगे कचरे ढ़ेर, सीवरेज चॉक की समस्या बनी नासूर, अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि निष्क्रिय

पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तिया की कलम से

खुलासा न्यूज, बीकानेर। शहर को साफ-सुथरा रखने व डै्रनेज सिस्टम को लेकर भले ही निगम प्रशासन व बोर्ड की ओर से बड़े-बड़े दावे किये जा रहे है, परंतु ये महज केवल दावे ही है, धरातल पर ये दावे दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे है। जिसका साक्ष्य खुद शहर है। साफ-सफाई की बात करे तो रक्षाबंधन जैसे त्यौहार पर शहर में जगह-जगह कचरे के ढ़ेर लगे हुए है, जिन पर पशु व मक्खियां मडर रही है। वहीं, ऐसा कोई वार्ड या मोहल्ला नहीं, जहां सीवरेज चॉक नहीं हो। सीवरेज का गंदा पानी सड़कों पर पसरा रहता है, जिनमें गंभीर बीमारियों का कारण बनने वाले मच्छर पनप रहे है। हालात यह है कि शहर के कई ऐसे वार्ड है जहां न सफाई कर्मी पहुंच रहा और न कचरा उठाने वाला वाहन, केवल और केवल कागजों में इतिश्रि की जा रही है। जगह-जगह नाले-नालिया कचरे से अटी हुई पड़ी है, कुछ स्थानों पर सफाई नहीं होने की वजह से नालियां स्थाई रूप से बंद हो गई, जिसके कारण पानी सड़कों पर बहता रहता है। आवारा पशुओं की बात करना भी बेईमानी होगा, हर चौक-चोराहा, सर्किल, भरे बाजार में आवारा पशुओं के झुंड के झुंड मिल जाएंगे। जिनसे कई बार जनहानि हो चुकी है और यही खतरा लगातार बरकरार बना हुआ है, सुधार की गुंजाई कहीं नजर नहीं आ रही। लोग संबंधित विभाग के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को फोन करते है, परंतु ये कॉल कभी रिसीव नहीं होते। भूलचूक में अगर फोन किसी ने कॉल को रिसीव कर लिया तो मात्र आश्वासन सिवाय और कुछ नहीं मिलता। इस अव्यवस्था न केवल शहर की छवि धूलमिल हो रही बल्कि आमजन भी परेशान है। शहर के कुछ एरिया ऐसे भी है, जहां अभी यह भी तय नहीं कि वहां की समस्या का समाधान निगम करेगा या यूआईटी। ऐसे में दोनों की एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते है, जिनके बीच में अगर कोई पीसता है तो वह है आमजन। चक्कर पर चक्कर निकालते रहे, समाधान की बजाय हाथ केवल निराशा लगती है। निगम की इस निष्क्रियता के कारण केवल आमजन ही नहीं बल्कि निगम खुद के कई पार्षद परेशान है, जिनके वार्डों में काम नहीं हो रहा। यहां तक कि महापौर पर कई दफा यह भी आरोप लगे है कि उनके द्वारा वार्डों के विकास में भेदभाव किया जा रहा है। यहां केवल बात महापौर की नहीं, बल्कि यहां के अधिकारी भी पूरी तरह निष्क्रिय है, जो फिल्ड में कम और दफ्तरों में लगे एसी-कूलर में बैठे नजर आते है। कोई फरियादी शिकायत लेकर पहुंचता है तो उसे यह कहकर टरका दिया जाता है कि बोर्ड भाजपा का है और महापौर की तरफ से यह कह दिया जाता है कि सरकार के अधिकारी काम नहीं कर या करने नहीं दे रहे। देखा जाए तो इस प्रकार के जवाब काम नहीं करने की मंशा को दर्शाता है और यही मंशा रही तो जनता जर्नादन समय आने पर जवाब देने में भी वक्त नहीं लगाएगी।

यही हाल यूआईटी के

निगम के जैसे हाल यूआईटी प्रशासन के है। यहां चेयरमैन नहीं का दंश यहां की जनता इस बार खूब झेला है। क्योंकि शहर का आधा हिस्सा यूआईटी के अंडर में आता है। जिसका कच्ची बस्तियों में रहने वाले लोग या फिर इस फिल्ड में कम रुचि रखने वाले लोगों पता ही नहीं, वे केवल और केवल मूलभूत समस्याओं को लेकर निगम को जिम्मेदार ठहराते है। यूआईटी में बैठे अधिकारी भी निगम के अधिकारियों की दफ्तरों में बैठे रहते है, जिनका आमजन की समस्याओं से कोई सरोकार ही नहीं। यह बात अलग है कि किसी अपरोच वाले व्यक्ति ने फोन कर दिया हो या किसी बड़े नेता या व्यापारी ने फोन कर दिया हो तो काम हो जाए, लेकिन एक आम-आदमी की यहां जल्दी सुनवाई तक नहीं होती। शहर की कई ऐसे क्षेत्र है जिनका सीवरेज सिस्टम या मूलभूत सुविधाओं से जुड़ा काम यूआईटी के हिस्से में आता है, जिसका फायदा निगम और यूआईटी दोनों उठाते है, क्योंकि समस्या का समाधान करना एक-दूसरे पर डाल देते है। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।

कलेक्टर की भी नहीं करते सुनवाई

जिला कलेक्टर कई मर्तबा निगम व युआईटी के इस संबंध में आदेशित कर चुके हैं कि शहरवासी मूलभूत सुविधाओं को परेशानी नहीं होना चाहिए, जिसके बकायादा संपर्क पोर्टल भी सरकार ने बना रखा है, परंतु दोनों ही विभाग के अधिकारी व जनप्रतिनिधि कलेक्टर की आदेशों की पालना नहीं कर रहे है। पिछले दिनों मानसून में हुई बारिश के बाद शहर की अधिकांश सड़कों के हाल बे हाल हो गए थे, ड्रैनेज सिस्टम फेल हो गया था, जिसको लेकर कलेक्टर भगवती प्रसाद ने तो गंभीता से लिया, परंतु नीचले अधिकारियों को इसे अनसुना ही कर दिया। जिसके बाद से शहर की सड़के बदहाल स्थिति में है। बड़े-बड़े नाले खुले पड़े हैं, जिनमें हर रोज पशु गिर रहे है। जहां सड़के बनी, जहां सीवरेज के चैंबर या तो सड़क के लेवल से ऊपर रख दिए या नीचे, जिनसे आये दिन हादसे हो रहे।

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