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बीकानेर: तीसरी बार फर्म आई, टेंडर हुआ अब वर्कऑर्डर राेका, क्याेंकि सरकार ने स्मार्ट सिटी प्राेजेक्ट बंद किया

बीकानेर। ड्रेनेज के मामले में बीकानेर प्रदेश में सबसे निचले स्तर पर है। हालात बदलने के लिए सरकार ने निगम से ड्रेनेज बनाने के लिए डीपीआर तैयार करने को कहा। दो बार टेंडर में एक भी फर्म नहीं आई। तीसरी बार फर्म आई। बीएसआर रेट से बिलो रेट आई। टेंडर हुआ। नेगोसिएशन हुआ। सिर्फ वर्कऑर्डर जारी हाेना था, जिसमें तीन महीने लग गए। ये काम स्टेट स्मार्ट सिटी याेजना में लिया था। अब सीएम अशाेक गहलाेत ने ये प्राेजेक्ट निरस्त कर दिया। इसलिए टेंडर भी निरस्त हाेगा।

शहर का ड्रेनेज सिस्टम बदहाल है और यही वजह है कि शहर की गलियाें से लेकर भीतर से गुजर रहे हाइवे तक बारिश में तालाब बन जाते हैं। इसे ठीक करने के लिए सरकार काेई ठाेस राशि दे उससे पहले डिटेल प्राेजेक्ट रिपाेर्ट चाहिए। पिछले बजट भाषण में मुख्यमंत्री अशाेक गहलाेत ने बीकानेर समेत कुछ शहराें काे स्टेट स्मार्ट सिटी में शामिल करने का एलान किया था।

सभी काे ढाई-ढाई साै कराेड़ रुपए देने का वादा किया था। उसी के दम पर सरकार के निर्देश पर दाे बार निगम ने टेंडर किया, लेकिन बीकानेर में काेई फर्म हिस्सा लेने नहीं आई। तीसरी बार 60 लाख का टेंडर हुआ, जाे 55 लाख में इंदौर की एक फर्म ने लिया। बाद में नेगाेसिएशन भी हुआ। ये काम जनवरी में ही हाे गया। उसके बाद अधिशाषी अभियंता, एईएन और जेईएन की एक कमेटी काे एप्रूवल देनी थी और उसके बाद वर्कऑर्डर जारी हाेना था।

फरवरी और मार्च बीत गया ना एप्रूवल दी ना वर्कऑर्डर हुआ। अप्रैल में जब इसकी गहराई में जाने पर पता लगा कि गुपचुप तरह से प्रदेश सरकार ने स्टेट स्मार्ट सिटी प्राेजेक्ट ही निरस्त कर दिया। इसलिए वहां से काेई पैसा नहीं मिलेगा। इसीलिए निगम आयुक्त ने टेंडर की फाइल चुपचाप अपने पास रखवा ली और वर्क ऑर्डर राेक दिया।

ड्रेनेज ना हाेने से हर साल हाेता है 8 से 10 कराेड़ का नुकसानशहर में ड्रेनेज सिस्टम ना हाेने से सरकार काे ही हर साल 8 से 10 कराेड़ रुपए का नुकसान हाेता है क्याेंकि बारिश के दिनाें में हाइवे से लेकर शहर की छाेटी-बड़ी सड़कें टूट जाती हैं। श्रीगंगानगर चाैराहे से लेकर गजनेर राेड आरओबी तक सड़क तालाब बन जाती है। कई घंटाें तक पानी नहीं निकलता। ऊपर से हैवी वाहन गुजरते हैं, जिससे सड़काें पर गड्ढे बन जाते हैं। गजनेर राेड आरओबी से पूगल फांटे तक सड़क के गड्ढाें का दंश पूरे शहर ने सालभर झेला है। अभी सड़क बनकर तैयार नहीं है। पुरानी गिन्नाणी में ताे ऐसे एक नहीं तमाम लाेग हैं, जिनका मकान भी दरक गया।

दरारें आ गई, लेकिन सरकार ड्रेनेज के लिए प्राेजेक्ट नहीं दे रही। इंदिरा काॅलाेनी, सुभाषपुरा, हनुमानहत्था, गंगाशहर, सुदर्शना नगर समेत ऐसी दाे दर्जन काॅलाेनी-माेहल्ले ऐसे हैं जाे 40 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हाेने पर इलाके जलमग्न हाे जाते हैं। घंटाें ट्रैफिक ही नहीं चल पाता। खुद निगम कार्यालय के आगे के ही यही हाल हैं। अकेले यूआईटी काे ही पैचवर्क कराने के लिए पांच से सात कराेड़ रुपए की जरूरत हाेती है। पीडब्ल्यूडी भी आठ से 10 कराेड़ रुपए का काम कराती है। निगम में अनवरत पार्षद काेटे से हाेने वाले काम से सड़काें की मरम्मत हाेती है। इसमें से आधे से ज्यादा सड़कें बारिश के कारण टूटती हैं।

5 साल के पैचवर्क की राशि से दुरुस्त हाे जाएगा ड्रेनेज सरकार भले ही एकमुश्त राशि ड्रेनेज के लिए देने से कतरा रही हाे, लेकिन सिर्फ पांच साल के पैचवर्क जितनी राशि से शहर का ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त हाे जाएगा। एक अनुमान के तहत 55 कराेड़ रुपए की जरूरत ड्रेनेज के लिए चाहिए।

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