
मृत्यु भोज पर कवयित्री मनीषा भारद्वाज की सुंदर कविता





मृत्यु भोज
शोक प्रकट करते लोग,
शामियाने में लगी टाट,
एकत्र सज्जन
भोजन की जो रहे बाट।
दावत हुई तैयार
भूल गए परिवेश,
सभी लगे पेट भरने
जैसे जाना हो परदेस।
बदल गया माहौल,
सज गई टोलिया,
भोजन का ले रहे जायका
ध्यान रहा ना मकसद आने का।
कुछ निकाली कमिया,
कुछ की आलोचना,
मरने वाले को गए भूल
पड़ोस की चर्चा ने पकड़ा तूल।
मां देखती होगी कहीं,
भोज का आयोजन,
कितने लोगो को कराया भोजन,
मेरे लाल ने कुछ न खाया
जिसको हमेशा पहले खिलाया।
बेटा व्यस्त रिवाजों में
कोई न हो जाए नाराज
मां की आत्मा हो मोक्ष प्राप्त
इसी चिंता में कर रहा प्रयास।
मृत मां की ममता तड़प रही,
बेटे ने ना किया आहार,
क्या यही मृत्यु भोज है मित्रों,
बेटा भूखा,मां संत्रस्त
बाकी सभी तृप्त।

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