मायड़ भासा नै मान्यता री बात सरकार कद तांई टाळती रैसी – श्याम महर्षि

मायड़ भासा नै मान्यता री बात सरकार कद तांई टाळती रैसी – श्याम महर्षि

 

श्रीडूंगरगढ। विश्व मातृभाषा दिवस पर स्थानीय संस्कृति भवन के सभागार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में अपने विचार प्रकट करते हुए चिंतक और साहित्यकार डॉ चेतन स्वामी ने बताया कि हरेक को मिलनेवाली सांस्कृतिक पहचान उस क्षेत्र की मातृभाषा से ही संभव है। भाषा को मान्यता न होने से हमारी संस्कृति का बंटाधार हो रहा है। संस्कृति का लोप होने से संस्कार कहां रह पाएंगे? मातृभाषा राजस्थानी के संदर्भ में उन्होने अवगत कराया कि राजस्थानी भाषा अपने आप में एक समृद्ध शब्द सरिता और व्याकरण की वाहिनी है। आठ करोड़ से भी अधिक राजस्थानियों की अपनी मातृभाषा का निरादर अब तक जिस तरह से होता आया है, वह असहनीय है। अपने वक्तव्य में साहित्यकार सत्यदीप ने कहा कि जन शुचिता की भावभूमि की कमी और उदासीनता ने इसे मान्यता से वंचित कर रखा है। मातृभाषा राजस्थानी की मान्यता हेतु लोक चेतना व लोक संस्कार की जागृति अति आवश्यक है। अगर संघर्ष की आवश्यकता पड़े तो एकजुट होकर सता के बहरे कानों तक आवाज पहुंचानी होगी। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्याम महर्षि ने कहा कि छिछली राजनीति ने राजस्थानी भाषा का जितना नुकसान किया है, उसकी भरपाई भाषा को मान्यता देकर ही की जा सकती है। वोटों के समय किए वादों को रद्दी की टोकरी में डालने वाले राजनेताओं को जन संघर्ष के माध्यम से चेतावनी दी जाना चाहिए। सता पक्ष बिना किसी अतिरिक्त व्यय भार के भी इसको राज्य की दूसरी राजभाषा का दर्जा प्रदान कर सकता है। सत्यनारायण योगी ने मातृभाषा को लोक हृदय की धड़कन बताते हुए खुद लोक को मान्यता देने का संकल्प धारित करने का निवेदन किया। विचार गोष्ठी में रामचंद्र राठी, भंवर भोजक,पत्रकार अशोक, विजय महर्षि, तुलसीराम चौरडिय़ा, बजरंग शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।

 

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