Gold Silver

विधायकों की राय को तवज्जो मिलेगी या हाईकमान राय थोपेगाःहाईकमान के पसंद के बावजूद राजस्थान में 2 मुख्यमंत्रियों को छोड़नी पड़ी थी कुर्सी

जयपुर। ये फोटो 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद राहुल गांधी ने शेयर की थी। कुछ दिनों पहले गांधी ने पायलट का उदाहरण देते हुए कहा था कि कांग्रेस धैर्य या सब्र रखना सिखाती है, वहीं गहलोत को अनुभवी नेता बताया था।

राजस्थान में इस समय की पॉलिटिकल सिचुएशन इन चार लाइनों में समझिए..

पायलट गुट चाहता है कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनें। हाईकमान की भी पसंद वही हैं।
दूसरी तरफ गहलोत गुट सचिन पायलट को सीएम के रूप में नहीं देखना चाहता।
तो इसका हल कैसे निकलेगा?
संभव है कि विधायकों के बीच पायलट के नाम पर वोटिंग करा ली जाए या वन टू वन रायशुमारी कर सबकी इच्छा पूछ ली जाए।
अब तक की स्थिति में संख्या बल के मामले में पायलट गुट कमजोर दिख रहा है। गहलोत के समर्थन में शांति धारीवाल के घर हुई बैठक में 70 से ज्यादा विधायक पहुंचे, जबकि सचिन पायलट के घर चुनिंदा एमएलए ही दिखे।
यदि ऐसा होता है तो पायलट गुट कमजोर पड़ेगा और संख्या बल के सामने हाईकमान भी किसी अन्य नाम पर विचार कर सकता है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। राजस्थान के इतिहास में दो बार और ऐसी ही स्थिति आई, जब विधायकों की राय के आगे हाईकमान को झुकना पड़ा।

 

राजस्थान में राजनीतिक उठापटक के बीच दैनिक भास्कर ने वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मण बोलिया से बात की। उन्होंने पूर्व में हुए 2 मामलों का जिक्र किया। इसमें हाईकमान सीएम जिसको बनाना चाहता था, उसके पक्ष में विधायक नहीं थे। थक-हारकर विधायकों की पसंद पर मुहर लगानी पड़ी। यह जानने के लिए हमें करीब 73 साल पीछे जाना पड़ेगा। आइए हम बताते हैं, ऐसा कब-कब हुआ और क्या वजह थी?
केस-1
कांग्रेस हाईकमान की इच्छा के बावजूद विधायकों के बहुमत से सीएम बने थे जयनारायण व्यास
7 अप्रैल 1949… राजस्थान की 22 रियासतों के एकीकरण के बाद पहली सरकार के मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री बनाए गए थे। हीरालाल शास्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के पसंदीदा नेता थे। इसी बीच, कांग्रेस में गुटबाजी हुई और मतभेद होने शुरू हुए। कुछ ही महीना बीता था कि कांग्रेस 2 गुटों में बंट गई।

 

एक गुट मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोकुलभाई भट्‌ट का था। दूसरा गुट जोधपुर के जयनारायण व्यास व मेवाड़ क्षेत्र के किसान नेता माणिक्यलाल वर्मा का था। दोनों गुटों में चली खींचतान व मतभेदों के कारण 5 जनवरी 1951 को यानी मात्र 21 महीनों बाद ही हीरालाल शास्त्री को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। शास्त्री गुट ने दिल्ली में नेहरू व पटेल से समर्थन के प्रयास किए, लेकिन माणिक्यलाल वर्मा व जयनारायण व्यास के पार्टी में लोकतंत्र की दुहाई देकर बहुमत का सम्मान करने की दलील केंद्रीय नेताओं को माननी पड़ी। इस तरह जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने। यानी हाईकमान को अपने पसंद के नेता को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय विधायक दल में बहुमत वाले जयनारायण व्यास को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमत होना पड़ा।

 

केस-2
हाईकमान जयनारायण व्यास को सीएम बनाना चाहता था, विधायकों के बहुमत पर सुखाड़िया बन गए थे मुख्यमंत्री
26 अप्रैल 1951… हीरालाल शास्त्री के इस्तीफे के बाद जयनारायण व्यास राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। 1952 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी सामने आई। फरवरी 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में जयनारायण व्यास दो सीटों से चुनाव लड़े। दोनों सीटों पर हार गए।

 

ऐसी स्थिति में टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। जब जयनारायण व्यास किशनगढ़ क्षेत्र से उप चुनाव में विजयी होकर आए तो टीकाराम पालीवाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जयनारायण व्यास ने 1 नवंबर 1952 को फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी कम नहीं हो रही थी बल्कि और बढ़ गई। मेवाड़ क्षेत्र के नेता अपना वर्चस्व चाहते थे। मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास पं. नेहरू के करीबी थे। पं. नेहरू देसी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष थे, तब जयनारायण व्यास ने परिषद के महासचिव के रूप में लंबे समय तक उनके साथ काम किया था। राजस्थान कांग्रेस में राजनीतिक परिस्थितियां व्यास के विपरीत बन रही थीं। मेवाड़ गुट हावी होना चाहता था।
माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। कांग्रेस हाईकमान तक असंतोष की खबरें पहुंचीं तो जयनारायण व्यास को विश्वास मत प्राप्त करने का निर्देश दिया गया। उस समय भी स्थिति यही बनी कि नेहरू नहीं चाहते थे कि उनके विश्वसनीय जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री के पद से हटें। जब इस प्रकार की सूचना जयपुर पहुंची तो मोहनलाल सुखाड़िया ने माणिक्यलाल वर्मा के साथ नेहरू से संपर्क कर राजस्थान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव की दुहाई दी और कहा- आप स्वयं लोकतंत्र के सबसे बड़े पैरोकार हैं। हम भी उसी नीति पर चल रहे हैं। तब नेहरू ने विधायक दल की मीटिंग बुलाने के निर्देश दिए। विधायक दल की मीटिंग में मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष में बहुमत होने से जयनारायण व्यास को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इस तरह सुखाड़िया मुख्यमंत्री बन गए।

Join Whatsapp 26