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बीकानेर में लाखों बच्चें करते है बालमजदूरी, दुकानों से लेकर ठेलों के आगे भीख मांगकर करते गुजारा, प्रशासन चुप

बीकानेर. भारत में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, लेकिन बावजूद इसके बालमजदूरी रूकने का नाम नहीं ले रही है। हालात यह है कि होटल, घरों, दुकानों व फैक्ट्रियों तक में बाल मजदूरी करते हुए बच्चे दिख जाएंगे। एक आंकड़े के मुताबिक बीकानेर में करीब एक लाख 15 हजार बच्चों से बाल मजदूरी करवाई जा रही है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन व बाल विभाग की ओर से इन बाल मजदूरों को नौकरी न छोड़ाकर स्कूलों में एडमिशन व मुख्य धारा में लगाने की आवश्यकता है। लेकिन बाल विभाग व स्थानीय प्रशासन को आंकड़े पता होने के बावजूद भी वे इन बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ नहीं पा रहे है। इससे हालात ऐसे है कि बच्चे जगह-जगह जाकर कुड़े-कचरादान से बोतलें व प्लास्टिक को लेकर आते है और उनको बेचते है। ऐसे में प्रशासन व बाल विभाग का न तो इन पर ध्यान जाता है और ना ही इन बच्चों को इस तरह के काम से दूर करने के प्रयास किए जाते है। वहीं कई जगह तो हालात यह है कि मिठाई की दुकानें, ठेलों, होटलों, रेस्टोरेंट, चाय की दुकानों के आगे कई बच्चे भीख मांग कर अपना गुजरा कर रहे है। ऐसे में प्रशासन इनको देखकर भी अनदेखा कर देता है। जो दिन बच्चों के पढ़ाई, खेलने और कूदने के होते हैं, उन्हें बाल मजदूर बनना पड़ रहा है। इससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। कहने को तो सरकार बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे व घोषणाएं करती है, फिर भी इसकी रोकथाम नहीं हो रही है और इतनी जागरूकता के बाद भी बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं दिखता है। मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार हो रहे है, जो गरीब बच्चियां है उन्हें पढ़ने की जगह घर में बाल श्रम कराया जाता है, छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़ बालश्रम करने के लिए मजबूर है। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, भौतिकी एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है,जो बच्चे बाल मजदूरी करते है, वे मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं और बाल श्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करती है। वर्तमान में कई जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण भी मां-बाप ही थोड़े से पैसे के लिए अपने बच्चों को ऐसे काम में लगा देते है। आज भी कारखानों, आईट के भट्टों पर बच्चों के बचपन को रिसता हुआ देख सकतें हैं।

गली-मोहल्लों में भी भीख मांगते दिखाई देते बच्चे
शहर के कई गली-मोहल्लों में बच्चे भीख मांगते हुए दिखाई देते है। ऐसे में शहरवासी भी इन बच्चों पर दया करके कुछ पैसे दे देते है। आर्थिक तंगी की वजह से यह बच्चे भीख मांगने को मजबूर हो रहे है। कई जगहों तो यह बच्चे कचरे के ढेर पर कुछ न कुछ चुगते रहते है और हाथ लगाते रहते है। ऐेसे में गंदगी व कचरे को हाथ लगाकर इधर-उधर चले जाते है। ऐसे में ये बच्चे बीमार भी हो जाते है और इनका इलाज भी समय पर नहीं करवा पाते है।

 

बाल विभाग छिपाता है नाम
स्थानीय प्रशासन व बाल विभाग की ओर से कभी कभार फैक्ट्रियों में बालमजदूरी करते बच्चों को छोड़वाया जाता है, लेकिन इसके बावजूद ये बच्चें कोई न कोई काम करते रहते है। बालविभाग जब भी किसी फैक्ट्री में जाता है तो न तो उस फैक्ट्री पर कार्रवाई की जाती है और न ही उस फैक्ट्री का नाम बताया जाता है। बाल मजदूरी व बच्चों का शोषण करने वाले लोगों व फैक्ट्री संचालकों का नाम भी उजागर करें। जिससे इन बच्चों को बाल मजदूरी से निकालकर इन्हें स्कूल व सामाजिक कार्य व मुख्यधारा से जोड़ा जाएं। बाल विभाग फैक्ट्री में जाते है तो वह कार्रवाई के नाम पर इतिश्री कर लेते है।

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