
देशद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला, पुराने कानून के तहत नए केस दर्ज करने पर रोक






नईदिल्ली. देश में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त फैसला दिया है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक आईपीसी की धारा 124-ए की री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जातीए तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। कोर्ट ने इस कानून के तहत दर्ज पुराने मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को 1870 में बने यानी 152 साल पुराने राजद्रोह कानून यानी आईपीसी की धारा 124-ए केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी। खबर पढ़ने से पहले इस मुद्दे पर अपनी राय जरूर बताएंण्ण्ण्
सरकार बोली. कानून रहे पर जांच के बाद थ्प्त् दर्ज हो
इसके पहले सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आईपीसी की धारा 124ए पर रोक न लगाई जाए। हालांकिए उन्होंने यह प्रस्ताव दिया है कि भविष्य में इस कानून के तहत थ्प्त् पुलिस अधीक्षक की जांच और सहमति के बाद ही दर्ज की जाए।
केंद्र ने कहा. आरोपियों की जमानत पर जल्दी फैसला हो
केंद्र ने कहा कि जहां तक लंबित मामलों का सवाल हैए संबंधित अदालतों को आरोपियों की जमानत पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है। गौरतलब है कि देशद्रोह के मामलों में धारा 124। से जुड़ी 10 से ज्यादा याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
ैळ ने सरकार की तरफ से यह भी कहा
केंद्र ने कहा संज्ञेय अपराध को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। कानून के प्रभाव पर रोक लगाना सही नहीं हो सकताए इसलिए जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए। मामला तभी दर्ज होए जब वह कानून के तहत तय मानकों के अनुरूप हो।
ैळ तुषार मेहता ने कहा कि देशद्रोह के लंबित मामलों की गंभीरता का पता नहीं है। इनमें शायद आतंकी या मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल है। वे कोर्ट में विचाराधीन हैंए और हमें उनके फैसलों का इंतजार करना चाहिए।
केंद्र ने यह दलील भी दी कि कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखे गए देशद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए आदेश देना सही तरीका नहीं हो सकता है।
पांच पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में 10 याचिकाएं दाखिल कीं
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडियाए ज्डब् सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है। इस मामले की सुनवाई ब्श्रप् एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है। इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं।
मंगलवार को कोर्ट ने पहले पूछा था. नए मामले दर्ज होंगे या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या इस एक्ट में नए केस दर्ज होंगे या नहींघ् कोर्ट ने यह भी पूछा था. देश में अभी तक जितने प्च्ब् 124.। एक्ट के तहत केस हैंए उनका क्या होगाघ् वह राज्य सरकारों को निर्देश क्यों नहीं दे रहा है कि जब तक इस कानून को लेकर पुनर्विचार प्रक्रिया पूरी नहीं हो जातीए तब तक 124ए के तहत मामलों को स्थगित रखा जाए।
केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि प्च्ब् की धारा 124। के प्रावधानों पर सरकार दोबारा विचार और जांच करेगी। केंद्र ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया है। इसमें कोर्ट से अपील की गई है कि इस मामले पर सुनवाई तब तक न की जाएए जब तक सरकार जांच न कर ले।
पहले केंद्र ने कहा था. कानून खत्म न किया जाए
पिछले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस दौरान केंद्र की ओर से यह दलील दी गई थी कि इस कानून को खत्म न किया जाएए बल्कि इसके लिए नए दिशा.निर्देश बनाए जाएं।
ऐसा है कानून का मौजूदा स्वरूप
देशद्रोह कानून पर याचिकाएं दायर करने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरीए मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचाए छत्तीसगढ़ के कन्हैयालाल शुक्ला शामिल हैं। इस कानून में गैर.जमानती प्रावधान हैं। यानी भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरतए अवमाननाए असंतोष फैलाने को अपराध माना जाता है। आरोपी को सजा के तौर पर आजीवन कारावास दिया जा सकता है।


