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भारत में हाड़ कंपाने वाली ठंड के लिए जिम्मेदार हैं अमेरिका

दुनिया भर का तापमान पिछले 150 सालों में 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा। लेकिन इस सदी के अंत तक इसके 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। ऊपर से धरती के दक्षिण ध्रुव के ऊपर ओजोन परत में हर साल बढ़ रहा छेद अंटार्कटिका से भी बड़े आकार का हो गया है। इसका भी ग्लोबल टेंपरेचर पर असर पड़ना तय है।

इतना ही नहीं तेल रिसाव और प्लास्टिक कचरे की वजह से बढ़ रहा समुद्री प्रदूषण भी किसी से छिपा नहीं है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण बढ़ने और क्लाइमेट चेंज के कारण भारत में हर साल भीषण गर्मी से 83700 लोगों की जान जाती है। साथ ही अधिक ठंड के कारण मरने वालों का आंकड़ा 6.55 लाख है।आप सोच रहे होंगे इस प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज के लिए कौन जिम्मेदार है? तो बता दें कि इसके लिए सिर्फ पंजाब और हरियाणा के पराली जलाने वाले किसान या दिल्ली की सड़कों पर दौड़ने वाली डीजल गाड़ियां जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए जिम्मेदार है अमेरिका जैसे विकसित देशों की महत्वाकांक्षा, जिसने आर्थिक लाभ के लिए बिना कुछ सोचे-समझे जमकर प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया है।

भारतीय लोगों को आज जो झुलसा देने वाली भीषण गर्मी और खून जमा देने वाली ठंड का सामना करना पड़ता है, उसके लिए अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देश कैसे जिम्मेदार हैं? कैसे इन उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ देशों की वजह से दुनिया भर का पर्यावरण प्रदूषित हुआ है और मौसम बदल रहा है?

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