
तनाव व संत्रास से मुक्ति पाने का माध्यम है साहित्य






सरोकार-एक साझा संवाद’ की चौथी कड़ी का आयोजन
लूनकरणसर। आहिस्ता-आहिस्ता खोले हैं पर, उड़ना है आसमां चाहिए।’ की टैग लाइन से अपना विजन क्लीयर कर हुंकार भरने वाले नव सृजनकर्ताओं की आंखों में पल रहे सपनों को मुक़म्मल फलक देने के उदेश्य से श्री जम्भेश्वर मंदिर लूणकरणसर में ‘सरोकार-एक साझा संवाद’ की चौथी कड़ी का आयोजन वरिष्ठ बाल साहित्यकार रामजीलाल घोड़ेला ‘भारती’ के सानिध्य में रखा गया। युवा रचनाधर्मी राजूराम बिजारणियां ने कहा कि साहित्य समाज को संस्कारित करता है। समकालीन जीवन के तनाव व संत्रास से मुक्ति पाने के लिए साहित्य की शीतल छाया जीवन को सुकून प्रदान कर सकती है। बिजारणियां ने इस मौके पर ‘क्या और कैसे पढ़ें’ के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात कही। सरोकार को परिभाषित करते हुए कवि-कहानीकार मदन गोपाल लढ़ा ने कहा कि लेखन के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। लढ़ा ने कहा कि साहित्य लेखन के लिए नियमित रूप से पढ़ना जरूरी है। रामजीलाल घोड़ेला ने कहा कि साहित्य के समकालीन परिदृश्य व विमर्श से भी हमें अवगत होना चाहिए। साहित्यिक संवाद ‘सरोकार’ में कमलकिशोर पीपलवा ने ‘किसी विषय की प्रतिक्रिया मात्र नहीं हो कविता’ विषय पर अपनी टिप्पणी रखी। केवल शर्मा ने कविता के शिल्प पक्ष पर अपने विचार साझा किए वहीं छैलदान चारण ने ‘साहित्य में लोक जीवन’ विषय पर अपना पक्ष रखा।
ये हुए शब्दों से रूबरू-
________________
इस अवसर पर ‘शब्दों से रूबरू’ सत्र के दौरान राजूराम बिजारणियां ने ‘जब-जब आता था स्टूडियो वाला’ रचना से शुरुआत करते हुए ‘चौराहा सब जानता है !’ कविता के उम्दा चित्र प्रस्तुत किए। मदन गोपाल लढ़ा ने ‘बेल, बूंटो अर चिंयां’ कहानी का वाचन कर वाहवाही लूटी। वहीं कवि छैलू चारण ‘छैल’ ने मां करणी की स्तुति में अपनी रचना पढ़ी। कमलकिशोर पीपलवा ने ‘ ‘ईलाज’ कहानी का वाचन किया। नवोदित कवि नन्द किशोर शर्मा ने ‘अकेला होना हमेशा खतरनाक होता है’, संदीप पारीक ‘निर्भय’ ने किसान की औरत’, बजरंग चारण’शक्तिसुत’ ने ‘जो हिमालय पर डटा है उसकी मैं अर्धांगिनी हूँ’, अतुल बिश्नोई ने ‘बेइंतिहा इश्क है जताऊं कैसे’, गोविंद शर्मा ने ‘यहां फूटी हुई किस्मत बेचारी रोज है हारी’ एवं अमरीश बोहरा ने जीवन संस्मरण सुनाकर सबको जोड़ने का प्रयास किया। वहीं दिलीप थोरी, रामेश्वर स्वामी, दुर्गाराम स्वामी, महेंद्र सारण, महेंद्र कुमार खिलेरी, नवरंग बेनीवाल, रतननाथ योगी, लक्ष्मण स्वामी, राजूराम प्रजापत ने भी रचना पाठ करते हुए अपने विचार साझा किए।

