बीकानेर के इस मोहल्ले में दीपावली पर लोगों को आग से खेलने का शौक,देखे विडियो






बीकानेर। वैसे तो आग से खेलना हर किसी के बस की बात नहीं और हर व्यक्ति आग से दूर रहना चाहता है। लेकिन बीकानेर में एक ऐसा मोहल्ला है जहां लोगों को आग से खेलने का शौक है। सुनक र बड़ा अजीब लगता है। किन्तु यह सच भी है। यहां इसे परम्परा के रूप में लिया जाता है। लगभग 125 वर्ष पहले शुरू हुई ये परम्परा आज भी जीवन्त है। आग से खेलने का ये आयोजन दीपोत्सव खेल बन्नाटी बीकानेर के बारह गुवाड़ चौक प्रांगण में होता है। यह खेल दशकों से कलात्मक प्रदर्शन और खिलाडिय़ों के साहसिक दमखम से ख्याति बनाए हुए है। आग के इस खेल से दर्शक रोमांचित हो जाते हैं। शनिवार की रात को इसका आयोजन हुआ।
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इनसे बनती है बन्नाटी
बन्नाटी बनाने में मुख्य रूप से बांस की लकडिय़ों, सूती वस्त्र, मूंगफली के तेल का उपयोग होता है। लोहे की चद्दर, छोटी कील, लोहे का पतला वायर, सफेद मिट्टी भी बन्नाटी तैयार करने के काम में ली जाती है। छह फुट की एक बांस की लकड़ी के दोनों सिरों पर करीब एक-एक फुट तक लोहे की चद्दर को कील की सहायता से गोलाई में लगाया जाता है। वरिष्ठ खिलाड़ी ईश्वर महाराज के अनुसार शिवनाथा मारजा की ओर से शुरू किया गया इस खेल को फागण्या महाराज ने जारी रखा। सूती धोती से कोडे तैयार किए जाते हैं। इन कोडों को छह या आठ की संख्या में बांस की लकड़ी के दोनों ओर क ील तथा वायर के माध्यम से बांध दिए जाते हैं। तैयार बन्नाटी को करीब 36 घण्टे तक तेल में भिगोक र रखा जाता है। बाद में इसे तेल निकलने के लिए छोड़ दिया जाता है व दोनों ओर सफेद मिट्टी का लेप किया जाता है। बन्नाटी के दोनों ओर आग जलाकर प्रदर्शन किया जाता है।
कलात्मक खेल प्रदर्शन
बन्नाटी को देखने के लिए लोग वर्ष भर इंतजार करते है। बन्नाटी के दोनों और जलती हुई आग के गोले, इसको घुमाने के दौरान निकलने वाली सर-सराहट की आवाज तथा हैरतअंगेज प्रदर्शन को देख हर कोई रोमांचित हो उठता है। बच्चों से बुजुर्ग तक एक के बाद एक सात बन्नाटियों के माध्यम से ‘बन्नाटी’ को अपने शरीर के दाएं भाग से बाईं ओर, सिर के उपर से, पांवों के नीचे से निकालकर क ई तरह के साहसिक एवं कलात्मक प्रदर्शन करते हैं।
वरिष्ठ खिलाडियों का किया सम्मान
खेल समाप्ति के बाद आयोजन समिति की ओर से वरिष्ठ खिलाडिय़ों ईश्वर महाराज,दुर्गादास ओझा,सुन्दर महाराज,मेघराज का सम्मान किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उर्जा मंत्री डॉ बी डी क ल्ला रहे। जिन्होंने परम्पराओं के निर्वहन को समाज के लिये अनुकरणीय बताया। कल्ला ने कहा कि पारम्परिक खेल जीवन में खुशियां तथा उल्लास के साथ नया जोश भर देते हैं। साथ ही आपसी प्रेम और भाईचारे को भी बढ़ाते हैं।

