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33 कलेक्टर, 1 ने भी नहीं माना मुख्यमंत्री का आदेश

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुड गवर्नेंस के जरिए अपनी सरकार को रिपीट करने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन उन्हीं के आदेशों का पिछले एक वर्ष में एक भी कलेक्टर ने पालन नहीं किया है। आदेश थे- रात्रि चौपाल करके ग्रामीणों की समस्या सुनना।
सीएम गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल (2008-2013) में कलेक्टरों को रात्रि चौपाल आयोजित करने के आदेश दिए थे। जिन्हें प्रशासनिक सुधार विभाग ने स्टैंडिंग ऑर्डर बना दिया था। इन आदेशों का पालन पिछली भाजपा सरकार (2013-2018) में भी जारी रहा, लेकिन फिर से गहलोत सरकार बनने के बाद यह आदेश धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चले गए।
प्रशासनिक सुधार विभाग ने भी इनके पालन पर ध्यान नहीं दिया तो कलेक्टरों ने भी इन्हें ताक में रख दिया। अब हाल यह है कि पिछले एक साल से कलेक्टरों ने कहीं पर भी रात्रि चौपाल की ही नहीं।
क्या होती है कलेक्टरों की रात्रि चौपाल
हर जिले में कलेक्टर को अपने क्षेत्र के किसी दूर-दराज के गांव में जाना होता है। कलेक्टर को गांव में ही नाइट स्टे करना होता है। शाम से ही कलेक्टर को गांव में किसी एक सार्वजनिक स्थान पर बैठकर ग्रामीणों की समस्याएं सुननी होती हैं।
वहीं पर जिले के सभी प्रमुख अफसरों को मौजूद रहना होता है, जिन्हें मौके पर ही समस्या दूर करने के आदेश जारी करने होते हैं। ग्रामीणों से कलेक्टर सरकार की विभिन्न योजनाओं का फीडबैक भी लेते हैं। कलेक्टर भोजन भी वहीं गांव में ही करते हैं।
ग्रामीण भी खुलकर उन्हें अपनी समस्याओं की जानकारी दे सकते हैं। सरकार के आदेश के मुताबिक कलेक्टर को महीने में दो बार जिले के किसी ना किसी गांव में रात्रि चौपाल करनी होती है। उसकी सूचना चार-पांच दिन पहले गांव वालों को देनी होती है। कई बार कलेक्टरों ने बिना सूचना दिए भी सीधे ही किसी गांव में पहुंच कर रात्रि चौपाल लगानी होती है।
रात्रि चौपाल के क्या फायदे?
ग्रामीणों को अपनी समस्याओं के लिए जिला मुख्यालयों के चक्कर नहीं काटने पड़ते।
कलेक्टरों को सरकार और प्रशासन के काम-काज की सटीक जानकारी मिल जाती है।
सरकार की ओर से यह व्यवस्था इसलिए की हुई है ताकि ग्रामीणों में सरकार के प्रति विश्वास पनपे और उन्हें लगे कि सरकार कलेक्टरों को उनके द्वार तक भेज रही है।
गांवों में वैसे ही मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहता है। ऐसे में रात्रि में बिजली, पानी, सडक़, अस्पताल आदि में सुविधाओं के अभाव की असल और फील्ड ओरियंटेड जानकारी कलेक्टरों को मिल सकती है।
जिला मुख्यालय में अफसरों के बीच ग्रामीण जिन समस्याओं पर मुखर होकर बोल नहीं पाते। उन पर वे अपने गांव में ज्यादा आसानी से बता पाते हैं।
कई बार कलेक्टर जब गांव में पहुंचते, तो सडक़, बिजली, सफाई, पानी से संबंधित समस्याओं की जानकारी तो बिना किसी के बताए ही मिल सकती है।
जो गांव जिला मुख्यालयों से 100, 150, 200 किलोमीटर जैसी लंबी दूरी पर स्थित हैं। रेगिस्तानी या आदिवासी इलाकों में स्थित हैं। उनकी समस्याएं कभी भी बिना वहां पहुंचे किसी कलेक्टर को पता नहीं चल पाती। ऐसे में रात्रि चौपाल प्रशासनिक हिसाब से कलेक्टरों के आंख-कान खोलने का काम करती है।
कलेक्टरों द्वारा रात का समय गांवों में बिताने से उन्हें वहां के जीवन, संस्कृति, भाषा, भोजन आदि की जानकारी भी सहज ही मिल सकती है।
इस व्यवस्था से सचिवालय से लेकर ठेठ गांव तक एक प्रशासनिक सिस्टम खड़ा होता है, जो फीडबैक और प्रॉब्लम शूटिंग से जुड़ा होता है।
कलेक्टर खुद अपने द्वारा जारी आदेशों के पालन की ग्राउंड रियलिटी भी जांच सकते हैं।
कलेक्टरों के लगातार होते तबादलों ने बिगाड़ी रात्रि चौपाल की ताल
जोधपुर और अजमेर संभाग के दो जिलों के कलेक्टरों ने नाम जाहिर न करने के आग्रह के साथ भास्कर को बताया कि इस बार राजस्थान में पिछले डेढ़-दो वर्षों में कलेक्टरों के तबादले कई बार हुए। ऐसे में कलेक्टर रूटीन काम को ही प्राथमिकता पर रखते हैं। जब किसी जिले में कलेक्टर के पद पर किसी अफसर को कुछ समय गुजरता है, तब वो रूटीन के अलावा गुड गवर्नेंस से जुड़े कार्यक्रमों पर ध्यान दे पाता है।
प्रदेश में 33 में से 17 जिले तो ऐसे हैं, जिनमें कलेक्टरों को छह महीने भी ऑफिस में लगातार नहीं मिल पाए। इन जिलों में श्रीगंगानगर, अलवर, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, अजमेर, जयपुर आदि शामिल हैं।
पिछले डेढ़-दो वर्ष में श्रीप्रकाश राजपुरोहित, नथमल डिडेल, रुकमणि रियार, प्रतिभा सिंह, टीना डाबी, शिवप्रसाद नकाते, इंद्रजीत सिंह यादव, राजन विशाल, अविचल चतुर्वेदी, नमित मेहता, आशीष मोदी, भारती दीक्षित, जितेंद्र प्रसाद सोनी आदि कलेक्टरों के तो तीन-तीन बार तबादले हो गए।
लगातार तबादले होने से कलेक्टर रात्रि चौपाल जैसे कार्यक्रमों पर फोकस नहीं कर सके।

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