
25 बटुकों का सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार के साथ सम्मान






खुलासा न्यूज, बीकानेर। श्री पनीनाथ गिरी मठ पंच मंदिर कोटगेट बीकानेर के प्रांगण में वैदिक एवं विधि विधान के साथ 25 ब्राह्मण बालकों का सामूहिक यज्ञोपवित का भव्य आयोजन निर्माण पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर राजगुरू 1008 स्वामी श्री विशोकानन्द भारती जी महाराज के सानिध्य एवं आशिर्वचन में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर महाराजत्री ने बटुकों को शुरू मंत्र एवं दीक्षा दी। श्री चित्र महासभा एवं ब्राह्मण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की ओर से महाराज श्री एवं बटुकों का सम्मान भी किया गया। राष्ट्रीय महामन्त्री अन्तर्राष्ट्रीय संगठन 00 योगेन्द्र कुमार दाधीच ने महाराज श्री का दुपट्टा पहनाकर एवं भगवान श्री परशुरामजी की भव्य तस्वीर भेंट कर सम्मानित किया। संगठन द्वारा 26 बद्धको एवं यज्ञोपवित धारण कराने पण्डित विजय कुमार व्यास एवं शिवशंकर व्यास का भी दुपट्टा पहनाकर एवं भगवान श्री परशुरामजी को तस्वीर भेंट कर सम्मानित किया गया। संगठन के योगेन्द्र कुमार दाधीच, लीलाधर आसोपा, शिवजीराम आचार्य शंकर लाल जोशी, सम्पत दायमा रजव दाधीच, प्रवीण दालीन आदि ने बटुकों का सम्मान किया। इस अवसर पर दुर्गाशंकर आचार्य धनीनाथ गिरीठ पंच मन्दिर के मंत्री जानकी नारायण श्रीमाली कोमोडाराम सोलंकी, न्यासी भवानीसिंह राठौड मोहन लाल आचार्य, डॉ कुलदीप बिट्टू भागवताचार्य पंडित मुरली मनोहर प्यास डॉ याचस्पति जोशी पण्डित अशोक शर्मा पुजारी भवानी, संजय सोनी आदि सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
प्रवचन स्वामी श्री विशोकानन्द जी भारती महाराज ने यज्ञोपवित धारण करने वाले ब्राह्मण बटुकों को ब्राह्मण संस्कारी को कायम रखने त्रिकाल संध्या वंदन करने शिखा एवं जनेत को धारण करते हुए प्रतिदिन मायती जप पूजन करने का महत्व बताते हुए कहा कि सनातन धर्म में प्रमुख [10] संस्कारों में से वशीपति एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक संस्कार है। इसके बिना ब्रा को बढ़ाने में पति परम आवश्यक है। सनातन धर्म-अना है इसका न कोई आदि है न कोई अन्त है। सनातन धर्म के पालन एवं पोषण में ब्राह्मण महत्वपूर्ण सूत्रधार है। पवित धारण करने वाले सभी बटुक नित्य कर्म एवं ब्राह्मण सरकारों को कायम रखते हुए पूरे सनातन धर्म को दिशा देने में अपने योगदान एवं कर्तव्यों का निवेदन करें। महाराजश्री ने कहा कि जो ब्रह्मा की सेवा एवं पूजा करता है उन पर भगवान की असीम अनुकम्पा बरसती है। माता-पिता की सेवा का महात्म्य बताते हुए मी महाराजश्री ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में कभी भी अपने माता-पिता को अ मात्र भी पीड़ा अथवा कष्ट नहीं देना चाहिये। इनकी आशा का सदैव पालन एवं सम्मान करना चाहिये। ऐसा करने वाला मनुष्य चार धाम आदि की तीर्थ यात्राओं एवं दान पुण्य से भी फलदायी पुण्य प्राप्त करता है।


