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2023 लेकर आया है यह बडी घटनाःचलते-फिरते मौतें बढ़ेंगी

 

बीकानेर।2020 में कोरोना ने दस्तक दी। हमने घरों में कैद रहकर साल गुजार दिया। 2021 आया तो लगा अब चीजें बेहतर होंगी, लेकिन बदतर होती गईं। 2022 से बहुत उम्मीदें थीं, तभी रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी। इसका असर पूरी दुनिया पर हुआ।

2023 आ चुका है। हालात सुधरने की उम्मीद है, लेकिन 2023 इस सदी का सबसे बुरा साल हो सकता है। क्यों? इसकी 5 वजहें हैं। पढ़िए, आज की मंडे मेगा स्टोरी…
1. 2023 में दिल की बीमारी से मौतें अचानक कई गुना बढ़ सकती हैं

पिछले साल अचानक बैठे-बैठे, नाचते, कसरत करते हुए मौत के सैकड़ों वीडियो सामने आए। ये सिर्फ भारत में नहीं हो रहा। 2022 में पूरी दुनिया में लाखों ऐसी मौतें हुई हैं।

मंडे मेगा स्टोरी21वीं सदी का सबसे बुरा साल हो सकता है 2023:चलते-फिरते मौतें बढ़ेंगी, मंदी से नौकरियां छिनेंगी; सुपरबग का भी खतरा

3 घंटे पहलेलेखक: आदित्य द्विवेदी/शिवांकर द्विवेदी

2020 में कोरोना ने दस्तक दी। हमने घरों में कैद रहकर साल गुजार दिया। 2021 आया तो लगा अब चीजें बेहतर होंगी, लेकिन बदतर होती गईं। 2022 से बहुत उम्मीदें थीं, तभी रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी। इसका असर पूरी दुनिया पर हुआ।

2023 आ चुका है। हालात सुधरने की उम्मीद है, लेकिन 2023 इस सदी का सबसे बुरा साल हो सकता है। क्यों? इसकी 5 वजहें हैं। पढ़िए, आज की मंडे मेगा स्टोरी…
1. 2023 में दिल की बीमारी से मौतें अचानक कई गुना बढ़ सकती हैं

पिछले साल अचानक बैठे-बैठे, नाचते, कसरत करते हुए मौत के सैकड़ों वीडियो सामने आए। ये सिर्फ भारत में नहीं हो रहा। 2022 में पूरी दुनिया में लाखों ऐसी मौतें हुई हैं।

2020-21 में कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में बुजुर्ग और बीमार लोगों की मौत हो चुकी थी। इसके बावजूद 2022 में एक्सेसिव डेथ हैरान करती है। एक्सपर्ट मानते हैं कि एक्सेसिव डेथ में ज्यादातर हार्ट से जुड़ी बीमारियों वाले मामले हैं।
लंदन की क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक इंग्लैंड में कोविड मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग के केस 27 गुना, हार्ट फेल के केस 21 गुना और स्ट्रोक के केस 17 गुना बढ़े हैं। इंग्लैंड में कोरोना से पहले किसी मरीज को हार्ट ट्रीटमेंट के लिए 1 साल से ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता था। अगस्त 2022 में ऐसे मरीजों की संख्या करीब 7 हजार हो गई है।
अमेरिका में कोविड से पहले हर साल लगभग 1.43 लाख हार्ट अटैक रिपोर्ट किए जा रहे थे, लेकिन कोविड की पहली लहर के बाद ये आंकड़े 14% तक बढ़ गए हैं। दूसरी लहर के बाद 25-44 साल की उम्र वालों में हार्ट अटैक से डेथ के मामले 30% तक बढ़ गए हैं।
ऑक्सफोर्ड की एक स्टडी के मुताबिक गंभीर कोविड से उबरे हर 10 में से 5 लोगों को हार्ट अटैक आने के हाई चांस हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि कोविड महामारी का अप्रत्यक्ष प्रभाव कोविड से भी बड़ा हो सकता है। ऐसा कहने के पीछे पिछली महामारियों की कुछ लर्निंग्स हैं।
1918 के स्पेनिश फ्लू के बाद ब्रेन फॉग और लगातार थकान के मामले आए थे। ब्रेन फॉग यानी सोचने, याद करने और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी।
स्पेनिश फ्लू के बाद लगातार हार्ट अटैक के मामले भी देखने को मिले थे। 1940 से 1959 के बीच हार्ट अटैक की लहर सी आ गई थी। हार्ट अटैक के इतने मामले आना बहुत अजीब था और इसे समझाना मुश्किल, लेकिन आज हमें पता है कि स्पेनिश फ्लू महामारी इसकी वजह रही थी।
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक कोविड के बुरे प्रभावों की लेगसी स्पेनिश फ्लू से भी बदतर हो सकती है।

 

2020 में कोरोना ने दस्तक दी। हमने घरों में कैद रहकर साल गुजार दिया। 2021 आया तो लगा अब चीजें बेहतर होंगी, लेकिन बदतर होती गईं। 2022 से बहुत उम्मीदें थीं, तभी रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी। इसका असर पूरी दुनिया पर हुआ।

1. 2023 में दिल की बीमारी से मौतें अचानक कई गुना बढ़ सकती हैं

पिछले साल अचानक बैठे-बैठे, नाचते, कसरत करते हुए मौत के सैकड़ों वीडियो सामने आए। ये सिर्फ भारत में नहीं हो रहा। 2022 में पूरी दुनिया में लाखों ऐसी मौतें हुई हैं।

2020-21 में कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में बुजुर्ग और बीमार लोगों की मौत हो चुकी थी। इसके बावजूद 2022 में एक्सेसिव डेथ हैरान करती है। एक्सपर्ट मानते हैं कि एक्सेसिव डेथ में ज्यादातर हार्ट से जुड़ी बीमारियों वाले मामले हैं।
लंदन की क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी की स्टडी के मुताबिक इंग्लैंड में कोविड मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग के केस 27 गुना, हार्ट फेल के केस 21 गुना और स्ट्रोक के केस 17 गुना बढ़े हैं। इंग्लैंड में कोरोना से पहले किसी मरीज को हार्ट ट्रीटमेंट के लिए 1 साल से ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता था। अगस्त 2022 में ऐसे मरीजों की संख्या करीब 7 हजार हो गई है।
अमेरिका में कोविड से पहले हर साल लगभग 1.43 लाख हार्ट अटैक रिपोर्ट किए जा रहे थे, लेकिन कोविड की पहली लहर के बाद ये आंकड़े 14% तक बढ़ गए हैं। दूसरी लहर के बाद 25-44 साल की उम्र वालों में हार्ट अटैक से डेथ के मामले 30% तक बढ़ गए हैं।
ऑक्सफोर्ड की एक स्टडी के मुताबिक गंभीर कोविड से उबरे हर 10 में से 5 लोगों को हार्ट अटैक आने के हाई चांस हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि कोविड महामारी का अप्रत्यक्ष प्रभाव कोविड से भी बड़ा हो सकता है। ऐसा कहने के पीछे पिछली महामारियों की कुछ लर्निंग्स हैं।
1918 के स्पेनिश फ्लू के बाद ब्रेन फॉग और लगातार थकान के मामले आए थे। ब्रेन फॉग यानी सोचने, याद करने और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी।
स्पेनिश फ्लू के बाद लगातार हार्ट अटैक के मामले भी देखने को मिले थे। 1940 से 1959 के बीच हार्ट अटैक की लहर सी आ गई थी। हार्ट अटैक के इतने मामले आना बहुत अजीब था और इसे समझाना मुश्किल, लेकिन आज हमें पता है कि स्पेनिश फ्लू महामारी इसकी वजह रही थी।
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया की रिसर्च के मुताबिक कोविड के बुरे प्रभावों की लेगसी स्पेनिश फ्लू

24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया। ज्यादातर वॉर एक्सपर्ट्स का मानना था कि 48 घंटे के अंदर यूक्रेन सरेंडर कर देगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पिछले 10 महीनों से ये जंग जारी है।
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने अरबों डॉलर के हथियार यूक्रेन को भेजे हैं और वादा कर रहे हैं कि 2023 में भी ये मदद जारी रखेंगे। यही न्यूक्लियर वॉर की वजह बन सकता है, जो लाखों लोगों की जान लेगा और इस दुनिया को हमेशा के लिए बदलकर रख देगा।
आप में से कुछ लोगों के दिमाग में होगा कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला, लेकिन इस फील्ड में सालों से काम कर रहे एक्सपर्ट्स ऐसा होने की साफ चेतावनी दे रहे हैं।

पुलित्जर प्राइज विनिंग जर्नलिस्ट क्रिस हेजेस इस जंग के लिए नाटो और अमेरिका की विदेश नीति को दोष देते हैं। उनके मुताबिक अगर ये जंग लंबी चली तो रूस और अमेरिका की प्रॉक्सी वॉर सीधी लड़ाई में बदल सकती है। जिससे न्यूक्लियर वॉर होने की पूरी आशंका है।

यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन के डायरेक्टर जेरेमी शपीरो का कहना है कि दोनों साइड एक एस्केलेटरी साइकल में फंस गए हैं। मौजूदा ट्रेंड उन्हें डायरेक्ट कॉन्फ्लिक्ट और फिर न्यूक्लियर वॉर की तरफ ले जा रहे हैं। जिसमें लाखों लोगों की मौत होगी।

शपीरो कहते हैं- अगर रूस बुरी तरह हारने लगा तो वो टैक्टिकल बम इस्तेमाल करेगा, जिस पर नाटो पलटवार करेगा। ये सब मिनटों में हो सकता है।

एक्सपर्ट कहते हैं कि यूक्रेन के सफल होने की संभावना जितना ज्यादा बढ़ती जाएगी, रूस के न्यूक्लियर हमले का खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा।

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा कि रूसी अधिकारियों ने अपनी सोसाइटी को संभावित न्यूक्लियर इस्तेमाल के लिए तैयार करना शुरू कर दिया है। इसी दौरान NYT ने लिखा कि यूक्रेन के लोग रूसी न्यूक्लियर हमले के लिए तैयार हो रहे हैं।
अगर ऐसा होता है तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार जंग में न्यूक्लियर वेपन का इस्तेमाल होगा। आखिरी बार अमेरिका ने जापान के नागासाकी और हिरोशिमा शहरों पर परमाणु बम गिराए थे। इसमें करीब 2 लाख लोग मारे गए थे। जो बचे वो विकलांग हो गए। शहर तबाह हो गए। इसका असर कई पीढ़ियों तक रहा।

वर्ल्ड इकोनॉमिक लीग टेबल 2023 के इस बयान को पढ़िए… ‘2022 में भले ही ग्लोबल इकोनॉमी ने 100 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा पार कर लिया हो, लेकिन 2023 में अगर महंगाई से लड़ने के लिए ब्याज दरें बढ़ती रहीं, तो 2023 में मंदी आएगी।’ सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) के मुताबिक महंगाई कंट्रोल करने के लिए ब्याज दर बढ़ाने का फार्मूला कई देश 2023 में भी जारी रखेंगे।
इसे पढ़ने के बाद आप भी सोच रहे होंगे कि ब्याज में बढ़ोतरी से महंगाई और मंदी का क्या रिलेशन?
ऐसा माना जाता है कि बैंक ब्याज बढ़ा देते हैं, तो लोग उधार कम करके सेविंग करना शुरू कर देते हैं। इससे मार्केट में प्रोडक्ट्स की डिमांड कम होती है। डिमांड कम तो महंगाई कम।
महंगाई कम करने के लिए अगर लंबे समय तक बैंक ज्यादा ब्याज के फॉर्मूले पर चलेंगे तो व्यापारी और कंज्यूमर्स दोनों के लिए ही लोन लेना महंगा हो जाएगा। इससे व्यापारी से लेकर आम लोग तक खर्च करने से बचेंगे। इन सब चीजों का असर देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP पर पड़ता है। अगर, किसी देश की GDP में लगातार दो क्वार्टर तक ग्रोथ न दिखे तो इसे मंदी की स्थिति कहते हैं।
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल इन्फ्लेशन रेट यानी महंगाई दर जो 2022 में 8.8% थी, वो इस साल घटकर 6.5% पर और 2024 तक 4.1% पर आ जाएगी। इन सब के बीच दुनिया भर के देशों के GDP ग्रोथ में गिरावट देखने को मिलेगी, जो आर्थिक मंदी को दर्शाता है।
ग्लोबल ग्रोथ रेट जो 2021 में 6% थी, वो 2022 में घटकर 3.2% पर आ गई और 2023 में 2.7% पर आ जाएगी। ये 2001 के बाद से सबसे कमजोर डेवलपमेंट प्रोफाइल है। 2023 में 25% चांस है कि ग्लोबल GDP ग्रोथ इस साल 2% से भी कम रहे। जो वैश्विक मंदी को दर्शाता है।

मंदी को सरल शब्दों में कहें तो आम आदमी के जेब में पैसों की कमी। जब जेब में पैसे नहीं होंगे, तो खरीदारी कम होगी। यानी मार्केट से डिमांड का लोड घट जाएगा, डिमांड में कमी मतलब प्रोडक्शन रेट में कटौती। जब कंपनियां प्रोडक्शन कम करेंगी तो जाहिर है मैन पावर भी कम लगेगा। ऐसे में लोगों की नौकरियां लाल घेरे में आ जाएंगी और बेरोजगारी बढ़ेगी।
इसके अलावा लोगों की परचेजिंग पावर कम होने से इन्वेस्टमेंट भी रुक जाता है। इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतों में भी बढ़ोतरी होगी। लंबे समय तक यही स्थिति बनी रही तो आखिरकार महंगाई बढ़ेगी।
4. कोरोना के बाद 2023 में बड़ा खतरा बन सकता है सुपरबग​​​​​​

मेडिकल साइंस के लिए सुपर बग पिछले कुछ सालों में एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए हालात ने इसे और खतरनाक बना दिया है। मेडिकल जर्नल लैसेंट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हालात नहीं सुधरे तो सुपरबग हर साल 1 करोड़ लोगों की जान ले सकता है। गौरतलब है कि 31 दिसंबर 2022 तक कोरोना से करीब 60 लाख मौतें हुई हैं।
आपके जेहन में भी सवाल उठ रहा होगा कि सुपर बग नाम की ये आफत आखिर है क्या?
दरअसल, सुपरबग किसी बैक्टीरिया, वायरस और पैरासाइट का स्ट्रेन है। मान लीजिए कोविड-19 से बचने के लिए आपने वैक्सीन लगवाई। वैक्सीन का नॉर्मल बिहेवियर है कि कोविड से लड़ने की क्षमता पैदा करे, लेकिन जब कोरोना वायरस का कोई ऐसा स्ट्रेन आ जाए जिस पर वैक्सीन असर ही न करे। यानी वैक्सीन के खिलाफ वायरस एंटीबॉडी डेवलप कर ले, तो कोविड वायरस के इस स्ट्रेन को उसका सुपरबग वर्जन कहेंगे।
मेडिकल से जुड़े लोग इस कंडीशन को प्रोफेनल लैंग्वेज में एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं। यानी वो स्थिति जब मेडिसिन पेशेंट की बॉडी में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस और पैरासाइट के सामने बेअसर हो जाए।

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