
प्राइवेट अस्पताल की बेशर्मी देखिए: 6 दिन में बनाया 1.83 लाख का बिल; 1.18 लाख रुपए चुकाए फिर भी स्कूटी जब्त कर ली







कोरोना महामारी में जहां लोग जिंदगी-मौत से जूझ रहे हैं, वहीं कुछ निजी अस्पताल संचालक इस आपदा में जमकर चांदी काट रहे हैं। अस्पताल में भर्ती मरीजों से इलाज के नाम पर हजारों-लाखों रुपए के बिल थमाकर अपनी जेबें भर रहे हैं। पैसे नहीं देने पर मरीज को गंभीर हालत में या तो डिस्चार्ज कर देते हैं या उनके वाहन या अन्य चीजें जब्त कर रहे हैं। ऐसा ही एक मामला जयपुर के सीतापुरा के पास महावीर कॉलोनी इंडिया गेट स्थित भानू अस्पताल का सामने आया है। जहां एक युवक की स्कूटी को अस्पताल संचालक ने जब्त कर लिया और 50 हजार रुपए देने पर छोड़ने की बात कही। यही नहीं जब मरीज के परिजन ने अस्पताल संचालक से दवाइयों का बिल मांगा तो उस बिल में न तो दवाइयों की संख्या लिखी और न बैच नंबर और न ही एक्सपायरी डेट।
पीड़ित युवक हेमंत रावत निवासी प्रताप नगर ने बताया कि उनके पिता मोहन सिंह (53) को कोविड होने के बाद 7 मई को भानू अस्पताल में भर्ती करवाया। भर्ती होते ही डॉक्टर ने स्थिति गंभीर बताते हुए आईसीयू में शिफ्ट करने की बात कही और ऑक्सीजन का बंदोबस्त करने के लिए कह दिया। आईसीयू का चार्ज 6 हजार रुपए प्रतिदिन और डॉक्टर की फीस एक हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से तय हुई, जबकि दवाइयों और जांचों का अलग से चार्ज देने की बात कही गई। 6 दिन भर्ती रहने के बाद अस्पताल संचालक ने मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाने की बात कही और बकाया 65 हजार रुपए जमा करवाने के लिए कह दिया। इस दौरान जब बिल मांगे तो बिल बाद में देने की बात कही। पैसे नहीं देने पर अस्पताल संचालक ने स्कूटी को जब्त कर लिया।
एक्सपायरी डेट
हेमंत ने बताया कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर जब बिल थमाया तो होश उड़ गए। फाइनल बिल 1 लाख 83 हजार 782 रुपए का बनाकर दिया। इसमें 6 दिन के अंदर 1 लाख 26 हजार रुपए तो केवल दवाइयों का ही बिल बताया। इसके अलावा 36 हजार रुपए बेड के चार्ज, 6 हजार रुपए डॉक्टर फीस, 12,670 रुपए की जांच और 3 हजार रुपए प्रोसिजर के नाम पर जोड़े गए। मेडिकल बिल जब देखे तो न तो उसमें दवाइयों (इंजेक्शन आदि) की एक्सपायरी डेट और बैच नंबर का जिक्र था और न ही उनकी संख्या। इलाज के दौरान एंटीबायोटिक, उल्टी-बुखार रोकने के इंजेक्शन और स्टेरॉयड दिए गए।
दो दिन घर पर रखने के बाद RUHS में मिली जगह
पीड़ित ने बताया कि 12 मई को डिस्चार्ज के बाद वे अपने पिता को झोटवाड़ा स्थित मरूधर अस्पताल लेकर गए, जहां अस्पताल के डॉक्टरों ने आईसीयू में रखने और 50 हजार रुपए प्रतिदिन का खर्चा आने की बात कही। एक रात में इलाज करवाने के बाद वहां से भी अगले दिन हम वापस घर आ गए। दो दिन घर पर ही रखने के बाद 17 मई को सुबह RUHS में ऑक्सीजन बेड मिला और भर्ती करवाया। पीड़ित ने बताया कि पैसे नहीं होने के कारण अब तक उसकी स्कूटी अस्पताल वाले के पास ही है।


