मंथली बंधी है,पहले ही पता चल जाता है कार्यवाही का,बोले कोड और लग गया सट्टा
बीकानेर। महंगे शौक व दिखावे की जिंदगी जीने के लिए आज का युवा नम्बरी सट्टे के आकंड़े में डूबा हुआ है। सट्टे के कारोबारी युवा वर्ग की कोहनी पर शहद लगाते हुए सौ का तीन सौ रुपए देकर उन्हीं की जेब से छह सौ रुपए निकलवाते हंै। युवा वर्ग इस खेल को समझ ही नहीं पाता है और तीन गुना पैसा मिलते ही लालयित होकर और पैसे दांव पर लगा देता है। उसकी भरपाई उधारी पैसों से करनी पड़ती है। धीरे-धीरे वह खासा कर्जदार होकर गलत रास्ते पर उतर जाता है। इस पूरे खेल को पनपाने पर बड़े अपराधियों का दिमाग काम कर रहा है, इनसे पुलिस भी अनजान नहीं है। पुलिस को अपनी बंधी मिलती है, और यह वसूली वर्दी में नहीं बल्कि सिविल में होती है। यह खुद और कोई नहीं बड़े सट्टेबाजों ने इस राज को खोला है।
चलते फिरते पकड़ाते हैं पर्ची
पहले अलग-अलग जगह झुंड के रूप में सट्टा पर्ची का काम चलता था, लेकिन अब चलती फिरती दुकान हो चली है। चलते- फिरते ग्राहक अंक बोलते है, सटोरियों कंडेक्टर की माफिक पर्ची थमा देता है। कसाईयों की बारी,जस्सोलाई क्षेत्र,जस्सूसर गेट इलाका,रानीबाजार ओद्योगिक क्षेत्र,गंगाशहर इलाके में थडिय़ां व छोटी दुकानदार खेल चलाते हैं। चाय के कोड में एक कट, दो कट शब्द बोलकर अंक लगाया जाता है। सुबह अंक लगने के बाद शाम को सभी वापस थडिय़ों पर चाय के बहाने आते हैं। अंक आते ही कोई जीतने पर खुश होता है तो कोई माथ पीटता नजर आता है। कुछ जगह तो ऐसी है जो बिल्कुल थानों के निकट है और पुलिस कहती है कि उन्हें कुछ पता नहीं।
हंसी ठिठोली के बीच बंटते है अंक
दाउजी रोड,कसाईयों की बारी क्षेत्र में हंसी ठिठोली व ठहाके के बीच वे बोलचाल में आने वाले ग्राहक को अंक देकर पैसा बटोर देते है। पर्ची सट्टा लिखने वाले ने अपना नाम न छापने की शर्ते पर बताया कि मंथली बंधी के चलती पुलिस का सिपाही ही उन्हें कार्रवाई की जानकारी देता है। उस समय वह इधर-उधर हो जाते हैं। महिने के अंत में सादी वर्दी में आने वाला सिर्फ आवाज लगाता है और उसे बंधी थमा दी जाती है। यह सिविल वाले थाने के बड़े अधिकारियों के खास है। ये सिर्फ वसूली व अन्य काम ही करते है। इतना ही नहीं बड़े अधिकारियों के कार्रवाई के आदेश पर सटोरिये ही जानकारी देकर छोटी-मोटी कार्रवाई करवाते हैं।