रिक्शावाला बना विधायक:बचपन शरणार्थी शिविर में बीता; बहन भूख से मरी, लेखिका महाश्वेता देवी से मुलाकात ने बदली जिंदगी - Khulasa Online रिक्शावाला बना विधायक:बचपन शरणार्थी शिविर में बीता; बहन भूख से मरी, लेखिका महाश्वेता देवी से मुलाकात ने बदली जिंदगी - Khulasa Online

रिक्शावाला बना विधायक:बचपन शरणार्थी शिविर में बीता; बहन भूख से मरी, लेखिका महाश्वेता देवी से मुलाकात ने बदली जिंदगी

देश के विभाजन के बाद छह साल की उम्र में एक बच्चा बंगाल के शरणार्थी शिविर में पहुंचता है। बचपन इतना मुश्किल कि चाय की दुकानों में काम करना पड़ा, मजदूरी करनी पड़ी। यह बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो बंगाल के तत्कालीन नक्सलबाड़ी आंदोलन का हिस्सा बन जाता है। लंबे समय तक जेल में रहता है, लेकिन वहां से भी मोहभंग होता है। फिर जादवपुर विश्वविद्यालय के सामने हाथ रिक्शा चलाने लगता है।

यह सब तो हुईं पुरानी बातें। ताजा जानकारी यह है कि मनोरंजन व्यापारी नाम का हाथ रिक्शा खींचने वाला वह व्यक्ति तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधायक बन चुका है। बहुत उम्मीद है कि ममता की आने वाली सरकार में उसे मंत्री भी बनाया जाए। रिक्शा वाले से लेकर माननीय विधायक हो चुके मनोरंजन व्यापारी की उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी को अब जरा तफसील से जानते हैं।

बहन को अपनी आंखों के सामने भूख से दम तोड़ते देखा था
देश के विभाजन के करीब छह साल बाद 1953 में मनोरंजन अपने परिवार के साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बरीशाल (अब बांग्लादेश में) से पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा स्थित शरणार्थी शिविर में पहुंचे थे। कुछ दिनों बाद ही उन लोगों को दंडकारण्य जाने निर्देश दिया गया, लेकिन मनोरंजन के पिता ने वहां जाने से मना कर दिया। उसके बाद शुरू हुआ संघर्ष का अंतहीन सिलसिला। मनोरंजन छोटी उम्र में ही चाय की दुकान पर काम करने लगे।

मनोरंजन बताते हैं कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने भूख से बड़ी बहन को दम तोड़ते देखा। उसके बाद दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, गुवाहाटी, लखनऊ और बनारस जैसे शहरों में जाकर बेगारी की, लेकिन कहीं मन नहीं रमा तो कोलकाता लौट आए। साठ के दशक में पश्चिम बंगाल में जब नक्सली आंदोलन चरम पर था, तो वह भी इससे जुड़े थे। 26 महीने जेल में बिताने पड़े, लेकिन नक्सल नेताओं की कार्यशैली को देखकर उनका मोहभंग हो गया। जेल से बाहर आने के बाद वे कोलकाता के जादवपुर रेलवे स्टेशन के सामने रिक्शा चलाने लगे।

 

प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी से मुलाकात के बाद बन गए लेखक
यहीं रिक्शा चलाते समय एक दिन अचानक एक महिला सवारी से मुलाकात हुई और उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। वह महिला थी आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने वाली जानी-मानी लेखिका महाश्वेता देवी। मनोरंजन ने हिम्मत जुटाते हुए उस महिला यात्री से जिजीविषा शब्द का अर्थ पूछा। इससे वह महिला हैरत में पड़ गई। उसने शब्द का अर्थ तो बताया ही, रिक्शेवाले के अतीत के पन्ने भी पलटे।
महाश्वेता ने उस रिक्शा वाले से अपनी पत्रिका बार्तिका में अब तक के जीवन और संघर्ष की कहानी लिखने को कहा और उसे अपना पता भी बताया। वह वर्ष था 1981। मनोरंजन बताते हैं, ‘महाश्वेता देवी से उस मुलाकात ने मेरी जीवन की दशा-दिशा ही बदल दी। अगर उनसे मुलाकात और बात नहीं हुई होती तो मैं शायद अब तक रिक्शा ही चला रहा होता।’

दर्जनों पुस्तकें प्रकाशिक हो चुकी हैं
महाश्वेता देवी की पत्रिका में छपने के बाद धीरे-धीरे उनके लेख कई बांग्ला पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और पूरा बंगाल उनको पहचानने लगा। नक्सल आंदोलन के दौरान जेल में रहने के दौरान एक कैदी और जेलर ने भी पढ़ने-लिखने की प्रेरणा दी। मनोरंजन का लिखना अलीपुर जेल से ही शुरू हो चुका था, लेकिन महाश्वेता से मुलाकात के बाद मनोरंजन बाकायदा साहित्यकार बन गए।

आखिर महाश्वेता देवी से जिजीविषा का अर्थ पूछने का ख्याल कैसे आया था? इस सवाल पर मनोरंजन कहते हैं, ‘मुझे लगा कि वे कोई प्रोफेसर होंगी। इसलिए हिम्मत जुटा कर पूछ लिया।’ महाश्वेता का मनोरंजन के जीवन पर इतना गहर असर है कि उन्होंने अपनी पुत्री का नाम भी महाश्वेता ही रखा है।

वर्ष 1981 में लेखक-साहित्यकार के तौर पर शुरू हुआ उनका सफर अब कई ऊंचाइयां हासिल कर चुका है। इस दौरान उनकी आत्मकथा समेत दर्जनों पुस्तकें तो प्रकाशित हुई ही हैं, दर्जनों पुरस्कार भी मिल चुके हैं। उनकी कई पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी हो चुका है। मनोरंजन की पुस्तकों में दलित वर्ग के संघर्ष नक्सल आंदोलन का विस्तार से जिक्र मिलता है।

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