मायड़ भाषा की मान्यता को लेकर गूंजे भाटी,देखे विडियो - Khulasa Online मायड़ भाषा की मान्यता को लेकर गूंजे भाटी,देखे विडियो - Khulasa Online

मायड़ भाषा की मान्यता को लेकर गूंजे भाटी,देखे विडियो

बीकानेर। आज राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता या राजस्थान की द्धितीय राजभाषा घोषित करना न केवल हमारे अस्तित्व से जुड़ा सवाल है, बल्कि ये पेट से भी जुड़ा है। लगभग सभी प्रांतों में सरकारी नौकरियों के लिए उसी प्रांत के अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाती है। जिन्होनें 10वीं की परीक्षा उस राज्य की द्धितीय भाषा उर्तीण की है। ऐसे में राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने तक हमें एकजुट होकर एक मंच पर अपनी आवाज को बुलंद करना होगा। ये बात राजस्थान मोटयार परिषद की ओर से मायड़ भाषा दिवस पर बीकानेर में आयोजित धरने के दौरान वक्ताओं ने कही। भाषा प्रेमियों ने कहा कि राजस्थानी भाषा का मुद्दा राजस्थान के लिए सांस्कृतिक, रोजगार परक व अस्मिता से जुड़ा हुआ है। राजस्थानी भाषा विश्व की समृद्धत्तम भाषा में से एक है। इसका गौरवशाली इतिहास है। चार लाख हस्तलिखित ग्रंथों का विपुल भंडार है। ढाई हजार वर्षो से भी पुराना इतिहास है। जिसमें राजस्थानी भाषा लिखी पढ़ी व बोली जाती है। 13 करोड लोग इसके बोलने वाले हैं। राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं देकर मातृ भाषा के अधिकार से राजस्थान को वंचित रखा जा रहा है। इसे अब और अधिक सहन नहीं किया जा सकता। उर्जा मंत्री डॉ बी डी कल्ला ने कहा कि 2003 में अशोक गहलोत सरकार ने राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सर्वसम्मति से संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, जिस पर तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने (2006 में) सैद्धांतिक सहमति भी दे दी। लेकि न, तमाम कारणों के चलते यह प्रक्रिया अटक गई। अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर आर-पार की लड़ाई में एक होकर सरकार से सीधी बात करें।

पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने कहा कि राजस्थानी 1200 साल पुरानी भाषा के साथ-साथ प्रदेश व देश विदेश में फैले 11 करोड़ लोगों की भाषा राजस्थानी आज भी मान्यता को तरसती है। राजस्थानी अमेरिका के वाइट हाउस में मान्यता प्राप्त है तथा नेपाल की दूसरी भाषा के रूप में स्वीकृत है।एक ओर राजस्थानी विश्व भर में 11 करोड़ लोगों की मातृभाषा मान्यता को तरसती हैं। जिस राजस्थान प्रदेश की भाषा को नेपाल और अमेरिका जैसे राष्ट्र संवैधानिक मान्यता प्रदान करते हैं उसे अपने ही देश में संवैधानिक मान्यता के लिए जूझना पड़ रहा है। किसी प्रदेश की मातृभाषा के उत्थान से राष्ट्रभाषा कमजोर नहीं बल्कि और अधिक समृद्ध होगी।

उन्होंने कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और राजस्थानी मातृभाषा। हिन्दी कई मातृभाषाओं का मिश्रण ही है और इन्हीं भाषाओं से उसने आज राष्ट्रभाषा का रूप लिया है।बाकी कसर कुछ गैर राजस्थानी अधिकारियों ने इस मामले को उलझाकर पूरी कर दी, ताकि प्रशासनिक सेवाओं से राजस्थान के प्रत्याशियों की उचित दूरी बनी रहे।विधायक बिहारीलाल विश्नोई ने कहा कि राजस्थानी भाषा को लेकर लंबा संघर्ष चल रहा है। उस संघर्ष में मेरी जिम्मेदारी भी बनती है कि मायड़ भाषा की मान्यता मांग के लिये विधानसभा में उठाऊं। उन्होंने कहा कि राजस्थान के अपने लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) में भी राजस्थानी के साथ दोहरा बर्ताव होता है। आरपीएससी ने अपने पाठ्यक्रम में राजस्थानी साहित्य और संस्कृति को तो शामिल रखा, लेकिन भाषा के तौर पर राजस्थानी को हटा दिया। ‘शायद यह इकलौता ऐसा उदहारण है जहां भाषा के बिना ही साहित्य पढ़ाया और पूछा जाता है।
छह जिलों के जुटें भाषा हैताळु
संभाग अध्यक्ष डॉ हरीराम विश्नोई ने बताया कि धरने के दौरान बीकानेर सहित श्रीगंगानगर, चूरु, हनुमानगढ़ के साथ ही नागौर और जोधपुर के राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए प्रयासरत भाषा हैताळू, साहित्यक ार, राजस्थानी फिल्म अभिनेता, रंगकर्मी आदि मौजूद रहें। इसके अलावा दवा विक्रेता संगठन,एनएसयूआई, विश्व हिंदू परिषद सहित अनेक राजनीतिक दलों के नेता आदि से धरने में शामिल होकर मायड़ भाषा की मान्यता के लिए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया।
भाषा मान्यता के लिए पीएम-सीएम को भेजा ज्ञापन
विश्व मातृभाषा दिवस पर दिए जाने वाले धरने के दौरान राजस्थानी मोट्यार परिषद की ओर से प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजें। परिषद की ओर से सौंपे ज्ञापन में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने, प्रदेश में दूसरी राजभाषा का दर्जा देने, राजस्थानी विषय को प्रत्येक उच्च माध्यमिक विद्यालय मे अनिवार्य करने, रीट में राजस्थानी विषय को जोडऩे, राजस्थानी विषय व्याख्याता पदों की भर्ती क रने, प्रत्येक विश्वविद्यालय में राजस्थानी विभाग खोलने, राजस्थान में होने वाली परीक्षाओं व भर्तियों में बाहरी राज्यों का कोटा 5 प्रतिशत किए जाने की मांग की गई है।

ये रहे मौजूद
एक दिवसीय धरने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन कल्ला,डॉ सत्यप्रकाश आचार्य,चंपालाल गेदर,शिवलाल तेजी,राजाराम स्वर्णकारपरिषद के प्रदेशाध्यक्ष डॉ गौरीशंकर प्रजापत,परिषद के अध्यक्ष विनोद सारस्वत,डॉ नमामीशंकर आचार्य,सरजीत सिंह,राजेश चौधरी, मुकेश रामावत,प्रशांत जैन, भरतदान चारण, रामोवतार उपाध्याय,शारदा विश्नोई,विजयशंकर सहित विभिन्न कॉलेजों के छात्र नेता,राजनेता भी शामिल हुए।

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