व्यक्तित्व विकास एक सतत और बहुआयामी प्रक्रिया है - Khulasa Online व्यक्तित्व विकास एक सतत और बहुआयामी प्रक्रिया है - Khulasa Online

व्यक्तित्व विकास एक सतत और बहुआयामी प्रक्रिया है

बीकानेर। मनोविज्ञान और मानव विकास ये अतिश्योक्ति नही यथार्थ है। व्यक्तित्व विकास एक सतत और बहुआयामी प्रक्रिया है। मनोविज्ञान इस विकास प्रक्रिया का एक सर्वोत्तम साधन है
जिसका बोध अभिभावको और शिक्षको को होना अत्यावश्यक है। तभी बालकों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जा सकता है। बालको का शैक्षणिक, शारीरिक और
भावनात्मक विकास उनके व्यक्तित्व विकास के महत्वपूर्ण आयाम होते है। इन आयामों का समय-ंउचयसमय पर विकास एक पूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से
अभिभावको और शिक्षको को पूर्णरुपेण अवगत होना होगा और इसका उपयोग उन्हें बालको के विकास के लिए करना होगा तभी हम भविष्य की एक सुदृ-सजय़ पी-सजय़ी का
निर्माण कर पाने में सक्षम हो पाएगें अन्यथा भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। वर्तमान समय पर अगर दृष्टिपात किया जाए तो हम यह पाएगें कि बालकों का व्यक्तित्व विकास
दिशा और दशा दोनो आयामो पर भटका हुआ है जो कि सामाजिक वैज्ञानिको के गहन चिन्ता का विषय है। सुरसा की तरह मुंह बाए सामने खड़ी समस्या का समाधान
-सजयूं-सजयऩे के लिए सभी प्रयासरत है। इन सब बिन्दुओं पर गहन चिन्तन करने के लिए आज करणी नगर स्थित स्वामी रामनारायण सीनियर सैकण्डरी स्कूल में शिक्षकों,
अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों और मोटिवेशनल गुरुओं का एक सम्मेलन का  आयोजन किया गया जिसमें व्यक्तित्व विकास के समक्ष आने वाली चुनौतियों और उनके
समाधानों पर विचार विमर्श किया गया। प्रख्यात मनोवैज्ञानिक डॉ. श्रीमती अंजू ठकराल ने अपने वर्षों के शोध और अनुभव के आधार पर अभिभावको और शिक्षको को बालको के बहुआयामी
व्यक्तित्व विकास के लिए प्रभावी मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होने मुख्य रुप से मोबाईल और उसके दुष्प्रभावों के कारणों और उनके निवारण पर अपना चिन्तन
प्रस्तुत किया। सम्मेलन में उपस्थित अभिभावकों ने अपनी जिज्ञासाओं को डॉ. ठकराल के सामने प्रस्तुत कर उनका प्रभावी समाधान प्राप्त किया।
बीकानेर के ख्यातिनाम अन्तराष्ट्रीय मोटिवेशनल गुरु डॉ. गौरव बिस्सा ने अभिभावको को बालकों के समक्ष अपना उच्चतम व्यावहारिक और चारित्रिक आदर्श
प्रस्तुत करने पल बल दिया। साथ ही उन्होने यह भी कहा कि अभिभावको को अपनी संतान के साथ अधिकाधिक समय भी व्यतीत करना चाहिए जिससे वे बालमन में आने वाले
परिवर्तनों की चुनौतियो से अवगत हो सके और उनकी जिज्ञासाओं को शांत कर सके। भारतीय संस्कृति की विश्वविख्यात संतान में संस्कार प्रदान करने वाली पद्धति का स्मरण कराते
हुए डॉ. बिस्सा ने अभिभावकों से अनुरोध किया कि वे भारत को विश्व गुरु बनाने वाली संतानों का निर्माण करें। सम्मेलन के अंत में आर.एस.वी. की प्राचार्या श्रीमती निधि स्वामी व ग्रुप के सी.ई.ओ. आदित्य स्वामी ने दोनो वक्ताओं का स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया। शाला के प्राचार्य श्री नीरज और उपप्राचार्या श्रीमती बिंदु बिश्नोई ने उपस्थित अभिभावको
का धन्यवाद ज्ञापित किया। व्यवस्थापक श्री रामलाल स्वामी ने सभी आगंतुको का हार्दिक आभार प्रकट किया।
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