पीबीएम एकबार फिर शर्मशार, परिजन से ठगे 5 हजार रुपये
बीकानेर। पीबीएम हॉस्पिटल में एक बार फिर मरीज के रिश्तेदार लपकों से ठगे गए। खुद को हॉस्पिटल का कर्मचारी बता एक लपके ने पांच हजार रुपए ऐंठ लिए। अच्छा इलाज होने की उम्मीद लगाए परिजन कुछ समझ पाते इससे पहले ही लपका पैसे लेकर चंपत हो गया। रतनगढ़, चुरू से ट्रोमा सेंटर लाए गए एक मरीज के रिश्तेदारों को हॉस्पिटल के बाहर ही एक व्यक्ति मिला। खुद को कर्मचारी बताते हुए अच्छी तरह से इलाज, जांच करवाने का भरोसा दिलाया। ट्रॉली लाया। मरीज को अंदर ले गया। मरीज के परिजनों ने उसके कहने पर इलाज करवाने के लिए पांच हजार रुपए दे दिए। कुछ देर बाद जब वह दिखाई नहीं दिया तो खोजबीन शुरू हुई लेकिन तब तक वह गायब हो गया। ठगे गए परिजनों ने ट्रोमा सेंटर के कर्मचारियों-गाड्र्स को घटना के बारे में बताया। बॉर्डर होमगार्ड के सिक्योरिटी ऑफिसर नरपतसिंह भी अपने गाड्र्स के साथ पहुंच गए। सीसी टीवी फुटेज खंगाले गए। इसमें मरीज के परिजनों ने उस शख्स को पहचान लिया जो पैसे लेकर चला गया। परिजन ओमप्रकाश ने पीबीएम पुलिस चौकी जाकर मामले की जानकारी भी दी।
कैंसर हॉस्पिटल में होती है मुनादी-लपकों से सावधान
मेडिकल कॉलेज प्राचार्य एवं कैंसर रोग विभागाध्यक्ष डा.एच.एस.कुमार ने घटना को गंभीर मानते हुए कहा है, मरीज के परिजनों को भी सतर्क रहना चाहिए। हॉस्पिटल में किसी भी इलाज के लिए पैसे नहीं लिए जाते। वे मानते हैं कि लपके सक्रिय हैं। इसीलिए लोगों को सतर्क करने के लिए कैंसर हॉस्पिटल परिसर और आस-पास हर दिन हैंड माइक पर लोगों को सावचेत किया जाता है कि वे लपकों के चक्कर में न आए।
फुटेज देखे, पहचान हो रही, गाड्र्स को कहा-देखते ही पकड़ो : बैरवाल
पीबीएम हॉस्पिटल सुपरिंटेंडेंट डा.पी.के.बैरवाल का कहना है, सीसी टीवी फुटेज देखकर मरीज के परिजन ने एक व्यक्ति को पहचाना है। पुलिस चौकी को भी रिपोर्ट की है। हमने भी गाड्र्स को सतर्क किया है कि इस आदमी को पूरे परिसर में कहीं देखते ही तुरंत पकड़कर पुलिस के सुपुर्द करें। डा.बैरवाल का कहना है, दो दिन पहले भी संदेह के आधार पर एक व्यक्ति का पीछा किया गया था लेकिन वह भागने में कामयाब हो गया। उसके गाड़ी नंबर नोट किए गए हैं।
पीबीएम हॉस्पिटल में लपकों और मोबाइल चोरों का बोलबाला है। लगभग हर दिन किसी न किसी का मोबाइल-पर्स चोरी होता है। दवाई और जांच की कमीशनखोरी करने वाले लपके हॉस्पिटल के लगभग हर विभाग में मंडराते रहते हैं। हर महीने तीन से चार ऐसे मामले पुलिस चौकी तक पहुंचते हैं।