आचार संहिता के बाद शुरू होगा श्रम विभाग का नया सत्र - Khulasa Online आचार संहिता के बाद शुरू होगा श्रम विभाग का नया सत्र - Khulasa Online

आचार संहिता के बाद शुरू होगा श्रम विभाग का नया सत्र

बीकानेर। भले ही अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में सत्र २०१९-२० की प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो गई हो, लेकिन श्रम विभाग में नया सत्र अब तक शुरू नहीं हो पाया है। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता में विभाग ने शिक्षा एवं कौशल विकास योजना के तहत सत्र २०१८-१९ में पास की गई कक्षाओं के आवेदन की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं की है। इससे श्रमिक परेशान हो रहे हैं। हालांकि आवेदन ३१ मार्च २०२० तक भरे जाएंगे, परन्तु अंतिम क्षणों में तकनीकी समस्याएं सामने आने के कारण श्रमिक प्राथमिकता से आवेदन करने के लिए अभी से पहुंचने लगे हैं और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।
जांच में अटके हजारों आवेदन
श्रम विभाग के संभागीय संयुक्त श्रम आयुक्त कार्यालय के अधीन शिक्षा सत्र २०१७-१८ में उत्तीर्ण की गई कक्षाओं के आधार पर शिक्षा एवं कौशल विकास योजना के हजारों आवेदन लम्बित पड़े हैं। पूर्व में दिसम्बर माह से ही आवेदनों की जांच का काम शुरू हो जाता था लेकिन इस बार इक्का-दुक्का आवेदनों के अलावा अन्य की जांच नहीं हो पाई है। फरवरी २०१९ में नियोजक प्रमाण-पत्र का नया प्रारूप जारी हो जाने के बाद अब सभी आवेदनों को आचार संहिता के बाद ऑब्जेक्शन लगाकर वापिस भेजने की तैयारी की जा रही है।
पंजीयन का अटका काम
निर्माण श्रमिकों के पंजीयन के हजारों ऑनलाइन आवेदन स्थानीय श्रम कार्यालय में विचाराधीन है। गत माह पंचायत समितियों से पंजीकरण व योजनाओं के लाभ वितरण का कार्य वापस लिए जाने के बाद अब श्रम विभाग में लम्बित आवेदनों की संख्या कई गुना बढ़ गई है, जबकि वर्तमान में तीन श्रम निरीक्षक पदस्थापित है और आचार संहिता के बाद काम शुरू करेंगे। ऐसे में आवेदकों को पंजीयन का लाभ कब मिलेगा। यह कहा नहीं जा सकता।
ग्रामीण श्रमिकों के लिए समस्या
शहरी क्षेत्र में श्रमिकों का सत्यापन मौके पर जाकर किया जा सकता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के श्रमिकों का सत्यापन विभाग टेलीफोन पर कैसे करेगा। यह बड़ा सवाल है। बताया जा रहा है कि ग्राम सेवकों से सत्यापन करवाने के बाद ही ग्रामीण श्रमिकों का पंजीकरण हो पाएगा, जबकि ग्राम सेवक सत्यापन करने से दूर भाग रहे हैं, क्योंकि सत्यापनकर्ता की एम्पलॉय आईडी और आधार नम्बर भी साथ में देने होते हैं। ऐसे में चुनाव के बाद ग्रामीण श्रमिकों की यह बड़ी समस्या सामने आ सकती है।

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