एक साल बीतने के बाद भी,निगम में नहीं बना प्रतिपक्ष नेता

एक साल बीतने के बाद भी,निगम में नहीं बना प्रतिपक्ष नेता

खुलासा न्यूज,बीकानेर। नगर निगम चुनाव परिणाम आएं आज एक वर्ष हो गया। 80 वार्ड वाले निगम में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। लेकिन जोड़तोड़ की राजनीति में भाजपा ने बाजी मारते हुए अपना महापौर व उपमहापौर बना लिया। इस चुनाव में मात खाने के बाद कांग्रेस की एकजुटता भी तार तार हो गई और हालात ये रहे कि निगम में भाजपा को घेरने के लिये कांग्रेस अपनी अपनी डपली अपना राग की युक्ति को चरितार्थ करने लगी। जिसका नतीजा यह रहा कि प्रदेश के कांग्रेस आका निगम में प्रतिपक्ष नेता तक नहीं बना पाएं। हालात यह है कि तीन गुटों में अपने अपने दावे ठोकने वाले का ंग्र्रेसी व समर्थित निर्दलीय पार्षदों ने अपने ही आकाओ के सामने अपने ही साथियों की टांगे खींची। जिसके चलते एक वर्ष बीतने के उपरान्त भी निगम में कांग्रेस पार्षदों को मुखिया नहीं मिल पाया है। अब इसे कांग्रेस की कमजोरी कहे या कांग्रेसी पार्षदों में काबिलियत की कमी। किन्तु राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी निगम के चुनाव नतीजों के एक वर्ष के बाद भी प्रतिपक्ष नेता का चुनाव नहीं कर सकी।
एकजुटता बड़ी कमजोरी
विश्वस्त सूत्रों की माने तो कांग्रेसी पार्षदों में एकजुटता का अभाव प्रतिपक्ष के चयन में रोड़ा साबित हुआ है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस पूर्व पश्चिम विधानसभा के समीकरणों व जातिय समीकरण को साधते हुए प्रतिपक्ष बनाना चाह रही है। लेकिन कुछ पार्षद इस बात को लेकर अड़े हुए है कि पार्षद के लिये लगातार जीत कर निगम में पहुंच रहे प्रतिनिधि को पार्षद बनाया जाएं। इतना ही नहीं कुछ निर्दलीय पार्षद भी इसकी चाह पाले अपना अलग गुट बनाकर अनेक बार जयपुर के फेरे लगा चुके है। ऐसे में तीन अलग अलग गुटों में समन्वय बैठाकर प्रतिपक्ष नेता बनाना कांग्रेस के लिये चुनौती बन गया है।
प्रदर्शन-कार्यक्रम भी अलग अलग
अनेक बार तो ऐसा देखने को आया है कि अपनी शक्ति प्रदर्शन को लेकर कई कांग्रेसी व समर्थित पार्षद अलग अलग प्रदर्शन व कार्यक्रम आयोजित कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने से भी बाज नहीं आएं। जिसका प्रदेश तक मैसेज भी गलत जा रहा है।

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