भाजपा पार्षद ने अपने ही बोर्ड के खिलाफ खोला मोर्चा
बीकानेर। नगर निगम बीकानेर में एकबार फिर भाजपा इतिहास दोहरा रही है। जहां महापौर को अपनों से ही दो दो हाथ करने पड़ रहे है। अपने वार्ड के विकास के लिये लगाएं गये टेण्डर को निरस्त करने से खफा भाजपा पार्षद कमल कंवर मेडतिया ने अपनी ही पार्टी के महापौर के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए निगम परिसर में सांकेतिक धरना दिया। पार्षद प्रतिनिधि भगवान सिंह मेडतिया ने वार्डवासियों के साथ ये धरना लगाया है। उनका रोष है कि निगम आयुक्त की वित्तिय व प्रशासनिक शक्तियों को छिना जा रहा है। तीन माह में ही उनके वार्ड के लिये एक भी विकास कार्य का टेण्डर नहीं लगाया गया है। बल्कि पूर्व आयुक्त प्रदीप के गंवाडे की ओर से लगाएं गये टेण्डर को निरस्त कर दिया गया है। जबकि इस टेण्डर की निविदा समाचार पत्र में भी साया की जा चुकी है। यहीं नहीं निगम की बेवसाईट पर भी ऑनलाईन टेण्डर लगा जा चुका है। ऐसे में टेण्डर प्रक्रिया को निरस्त कर वार्डवासियों की भावना को आहत करने का काम महापौर ने किया है। मेडतिया ने कहा कि टेण्डर को नियम विरूद्व निरस्त किया गया है। इससे राजस्व का नुकसान हुआ है। अगर आयुक्त ने बात को नहीं माना तो आने वाले समय में अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा।
यह है पूरा मामला
जानकारी मिली है कि वार्ड 37 में भुट्टो के चौराहे पर प्रवेश द्वार के लिये 10.56 लाख का टेण्डर फरवरी में लगाया गया था। जिसकी निविदा न के वल समाचार पत्र में बल्कि ऑनलाईन भी लगाई गई। किन्तु महापौर के दबाव में इस टेण्डर को निरस्त कर दिया गया। जिसको लेकर क्षेत्र की पार्षद कमल कंवर ने आयुक्त को ज्ञापन देकर निरस्त टेण्डर पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था। जिस पर आयुक्त ने डीएलआर व लेखाधिकारी से मार्गदर्शन मांगकर रिपोर्ट देने को कहा। जिस पर दोनों ही अनुभागों ने अपनी रिपोर्ट आयुक्त को दे दी। जानकारी मिली है कि महापौर ने अपनी शक्तियों के विपरित जाकर इस टेण्डर को निरस्त किया है।
भाजपा बोर्ड का अपनों से विरोध झेलने का इतिहास
गौर करने वाली बात ये है कि नगर निगम में जब जब भाजपा का बोर्ड बना है। तब तब महापौर हो या सभापति उसे अपने ही पार्षदों के विरोध का सामना करना पड़ा है। जिससे हमेशा भाजपा की किरकिरी हुई हैॅ। भाजपा जिलाध्यक्ष अखिलेश प्रतापसिंह जिस समय सभापति बने,उन्हें भी अपने भाजपा के विरोध के कारण अपने पद से हाथ धोना पड़ा। पूर्व महापौर नारायण चोपड़ा ने अपना पूरा कार्यकाल अपने ही पार्षदों के विरोध व नाराजगी के चलते पूरा किया। अब महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित के भी हालात कुछ ऐसे ही है। तीन माह के कार्यकाल के दौरान ही महापौर राजपुरोहित को अपनों से नाराजगी झेलनी पड़ रही है। भाजपा पार्षद दबी जुबां में ये कहते नजर आते है कि महापौर सुशीला कंवर के परिवारजनों का निगम में दिनों दिन हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है और वे नगरिय नियमों के विरूद्व जाकर काम कर रहे है।